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[३७
मुहूर्तराज ]
॥ अथ योग विचारः ॥ विष्कुंभादि दिनयोग नाम - (आ. सि.) संख्या २७
विष्कुंभः प्रीतिरायुष्मान् सौभाग्यः शोभनस्तथा । अतिगंडः सुकर्मा च धृतिः शूलं तथैव च ॥ गंडो वृद्धिधुवश्चैव व्याघातो हर्षणस्तथा । वज्रः सिद्धिर्व्यतीपातो वरीयान् परिधः शिवः ॥
सिद्धः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्मा चैन्द्रो च वैधृतिः । अर्थ :- दिनयोग २७ हैं यथा - विष्कुंभ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य शोभन, अतिगंड, सुकर्मा, धृति, शूल, वज्र, सिद्धि, व्यतीपात, वरीयान्, परिध, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्मा, ऐन्द्र, और वैधृति। विष्कुंभादियोगों की त्याज्य घटिकाएँ - वशिष्ठ मत से
सवैधृतो हि व्यतिपातयोगः, सर्वोऽप्यनिष्टः परिधार्धभाद्यम् । ___ अर्थ :- वैधृत सहित व्यतिपात अर्थात् ये दोनों योग पूर्णत: अशुभ हैं और परिधयोग का पूर्वार्ध अशुभ है। कश्यप मत से -
"विष्कुंभवज्रयोस्तिस्त्रः षट् च गंडातिगंडयोः ।
व्याघाते नव शूले तु पंच नाड्यस्तु गर्हिताः ॥ अन्वय :- विष्कुंभवज्रयोः तिस्त्रः (नाडय:) गंडातिगंडयोः च षड् (नाड्य:) व्याघाते नव (नाड्यः) शूले तु पंच नाड्यः गर्हिताः (निन्दिताः)
अर्थ :- विष्कुंभ एवं वज्र की आद्य तीन घड़ियाँ, गंड एवं अतिगंड की आदि की छः घड़ियाँ, व्याघात की आदि की नौ घड़ियाँ शूल की आदि की पांच घड़ियाँ निन्दित हैं, अतः इन्हें शुभ कार्य में छोड़ना चाहिये। आन्दादिसंज्ञक २८ योग - (मु.चि.शु.प्र. श्लो. २३, २४ वें)
आनन्दाख्यः कालदण्डश्चे धूम्रो, धातासौभ्यो ध्वांक्षकेतू क्रमेण । श्रीवत्साख्यो वज्रकं मुद्गरश्च, छत्रं मित्रं मानसं पद्यलुम्बौ ॥ उत्पामृत्यु किल काणसिद्धि शुभोऽमृताख्यो मुसलो गदश्च । मातङ्गरक्षश्चसुस्थिराख्यप्रवर्धमानाः फलदाः स्वनाम्मा ॥
अथ आनन्दादि योगबोधक सारणी | ७ केतु
१९ सिद्धि २५ रक्ष २० शुभ
२६ चर १५ लुम्बक
२७ सुस्थिर १० मुदगर १६ उत्पात
२२ मुसल ११ छत्र
१७ मृत्यु १२ मित्र
२४ मातंग
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आनन्द कालदण्ड
१३ मानस १४ पद्म
८ श्रीवत्स ९ वज्रक
२१ अमृत
धाता
२८ प्रवर्धमान
सौम्य ध्वांक्ष
२३ गद
१८ काण
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