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________________ तीर्थंकर महावीर भगवान का जब मेरु पर इन्द्रकृत अभिषेक संपन्न होने को था, उस समय सुरेन्द्र के चित्त में यह शंका उत्पन्न हुई थी, कि भगवान का शरीर छोटा है । कहीं बड़े-बड़े कलशों के द्वारा सम्पन्न किया जाने वाला यह महान् ग्रभिषेक प्रभु के प्रत्यन्त सुकुमार शरीर को सन्ताप तो उत्पन्न न करे ? भगवान ने अवधिज्ञान से इस बात को जानकर इन्द्र के सन्देह को दूर करने के लिए अपने पैर के अंगूठे के द्वारा उस महान गिरिराज को कम्पित कर दिया था । इससे प्रभावित हो इन्द्र ने वर्धमान तीर्थंकर का नाम 'वीर' रखा था । प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने बृहत्प्रतिक्रमण की टीका में उपरोक्त कथन इन शब्दों में स्पष्ट किया है—–“जन्माभिषेके च लघुशरीर- दर्शनादाशंकितवृत्तेरिद्रस्य स्वसामर्थ्यख्यापनार्थं पादांगुष्ठेन मेरुसंचालनादिद्रेण 'वीर' इति नाम कृतम् ( पृ० १६ –– प्रतिक्रमण ग्रन्थत्रयी ) । वर्धमान चरित्र में उक्त प्रसङ्ग का इस प्रकार निरूपण किया गया है- तस्मिन् तदा क्षुवति कंपित-शैलराजे घोणा विश्व सलिलात्पृथुकेप्यस्त्रम् । इन्द्रादयस्तृपमिवैव पदे निपेतुः वीर्यं निसर्गज मंनतमहो जिनानां ।। १७--८२।। जिस समय इन्द्र ने बाल - जिनेन्द्र का अभिषेक किया, उस समय नासिका में जल के प्रवेश होने से उन बाल- जिनेन्द्र को छींक आ गई । उससे मेरु पर्वत कम्पित हो गया और इन्द्र आदिक तृण के समान सहसा गिर पड़े । जिनेश्वर के स्वाभाविक अपरिमित बल है । यह प्रभाव देखकर इन्द्र न प्रभु का नाम वीर रखा था । पद्मपुराण का यह कथन भी ध्यान देने योग्य है- पादांगुष्ठेन यो मे मनायासेन कंपयत् । लेभे नाम महावीर इति नाकालबाधिपात् ॥२--७६॥ ५२ ] भगवान वर्धमान प्रभु ने बिना परिश्रम के पैर के अंगुष्ठ के द्वारा मेरु को कम्पित कर दिया था, इसलिए देवेन्द्र ने उनका नाम 'महावीर' रखा था । यथार्थ में तीन लोक में जिन भगवान की सामर्थ्य के समान दूसरे की शक्ति नहीं होती है । मेरु शिखर पर किया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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