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________________ तीर्थकर सुरराज के करतल में सौंपा । कहा भी है---- ततः करतले देवी देबराजस्य तं न्यधात् । बालार्कमौदये सानौ प्राचीव प्रस्फुरन्मणौ ॥१३---३६॥ जिस प्रकार पूर्व दिशा प्रकाशमान मणियों से शोभायमान उदयाचल के शिखर पर बाल-सूर्य को विराजमान करती है, उसी प्रकार इन्द्राणी ने बाल-जिनेन्द्र को इन्द्रके करतलम विराजमान कर दिया । सुरराज द्वारा सहस्र नेत्र धारण प्रभु की अनुपम सौन्दर्यपूर्ण मनोज्ञ छबि का दर्शन कर सुरराज ने सहस्रनेत्र बनाकर अपने आश्चर्यचकित अंतःकरण को तृप्त करने का प्रयत्न किया, किन्तु फिर भी वह आश्चर्य एवं आनन्द के सिन्धु में आकंठ निमग्न रहा आया । जिस समय सुरराज ने जिनराज को अपनी गोद में लिया, उस समय जय-जयकार के उच्च स्वर से दशों दिशाएँ पूर्ण हो रही थीं। इन्द्र ने प्रभु की स्तुति करते हुए कहा त्वं देव जगतां ज्योतिः त्वं देव जगतां गुरुः । त्वं देव जगतां धाता त्वं देव जगतां पतिः ।।४१॥ महापुराण हे भगवन् ! आप विश्वज्योति स्वरूप हो, जगत् के गुरु हो, त्रिभुवन को मोक्षमार्ग का प्रदर्शन कराने वाले विधाता हो । हे देव ! पाप समस्त जगत् के नाथ हो । ऐरावत पर स्थित प्रभु की शोभा भगवान को अपनी गोद में लेकर सुरराज ऐराक्त हाथी पर विराजमान हुए। उस समय ऐसा दिखता था मानो निषध पर्वत के अंक में बालसूर्य शोभायमान हो रहा हो । उस परम पावन दृश्य की क्षण भर अपने मन में कल्पना करने से हृदय में एक मधुर रस की धारा प्रवाहित हुए बिना न रहेगी । सौधर्मेन्द्र की गोद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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