________________
तीर्थंकर उत्पन्न करने वाले भगवान ऋषभदेवरूपी तेजः पुञ्ज को धारण कर रही थी और महाराज नाभिराज कमलों से शोभायमान सरोवर के समान जिनेन्द्र होने वाले सुत रूपी सूर्य की प्रतीक्षा करते हुए बड़ी आकांक्षा के साथ महान धैर्य को धारण कर रहे थे ।
जगदम्बा महादेवी माता मरुदेवी के गर्भ में विराजमान ऋषभनाथ प्रभु का ज्ञान नेत्रों द्वारा दर्शन कर मुमुक्ष जन उन परम प्रभु को प्रणाम करते हुए महान् सुख का अनुभव करते थे । प्रत्येक के अन्तःकरण में बाल- जिनेन्द्र के साक्षात् दर्शन की अवर्णनीय उत्कंठा उत्पन्न हो रही थी । काल व्यतीत होते देर नहीं लगती । सुख के क्षण तो और भी वेग से बीत जाते हैं । अब वह मङ्गल वेला समीप है, जब त्रिभुवन को सुखदाता देवाधिदेव भगवान आदीश्वर प्रभु का जन्म होने वाला है । उन प्रभु को शतशः प्रणाम है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org