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तीर्थकर
१८ ] पंच-कल्यारणक
इस संसार को पंच प्रकार के संकटों-अकल्याणों की आश्रयभूमि माना गया है । उनको द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव तथा भावरूप पंच परावर्तन कहते हैं। तीर्थंकर भगवान के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान तथा मोक्ष का स्वरूप चितवन करने वाले सत्पुरुष को उक्त पंच परावर्तनरूप संसार में परिभ्रमण का कष्ट नहीं उठाना पड़ता है । उनके पुण्यजीवन के प्रसाद से पंच प्रकार के अकल्याण छुट जाते हैं तथा यह जीव मोक्षरूप पंचमगति को प्राप्त करता है । पंच अकल्याणों की प्रतिपक्ष रूप तीर्थंकर के जीवन की गर्भ, जन्मादि पंच अवस्थाओं की पंचकल्याण या पंचकल्याणक नाम से प्रसिद्धि है।
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