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________________ ३०२ ] तीर्थंकर काल प्रारंभ होगा। उस समय क्षीर, अमृत आदि जाति के मेघों की वर्षा होगी, उससे सब वस्तुओं में रस उत्पन्न होगा । आगम के इस कथन से यह स्पष्ट हो जाता है कि छठवें काल के अन्त में सभी भवनादि कृत्रिम सामग्री इस आर्य खण्ड में नष्ट हो जायगी, तब निर्वाण स्थान आदि का भी पता नहीं रहेगा । उस स्थिति में आगामी होने वाले जीव अपने समय में मोक्ष जाने वाले महापुरुषों के निर्वाण स्थानों को पूजेंगे। इतनी विशेष बात है कि सम्मेदशिखर को आगम में तीर्थकरों की स्थायी निर्वाण भूमि माना है। इस हुँडावसर्पिणी कालके कारण आदिनाथ भगवान का कैलाश, नेमिनाथ का गिरनार, वासुपूज्य का चंपापुर तथा वीर प्रभु का पावापुर निर्वाण स्थान बन गए । अन्य काल में ऐसा नहीं होता; इसलिए सम्मेदशिखर तो अविनाशी तीर्थरूपता धारण करता रहेगा । अन्य तीर्थों की ऐसी स्थिति नहीं है । इससे उनकी शाश्वतिकता स्वीकार नहीं की गई है। __ यह बात भी विचारणीय है कि जिस स्थान से किन्हीं पूज्य आत्माओं का साक्षात संबंध रहा है, जिसका इतिहास है, उस स्थान पर जाने से भक्त हृदय को पर्याप्त प्रेरणा मिलती है। उज्ज्वल भावनायें जागती हैं। अन्य स्थान में ऐसा नहीं होता । पावापुरी के पुण्य पद्मसरोवर में जो पवित्र परिणाम होते हैं, वे भाव समीपवर्ती अन्य ग्रामों में नहीं होते, यद्यपि अतीत काल की अपेक्षा सभी स्थानों से मुक्त होने वाली आत्माओं का सम्बन्ध रहा है । अपने कल्याण तथा लाभ का प्रत्यक्ष विचार करने वाला व्यक्ति उन स्थानों की ही वंदना करता है, जहाँ के बारे में निश्चित इतिहास ज्ञात होता है । किस स्थान से कौन, कब मोक्ष गए इसका पता न हो, तो वह क्या प्रेरणा प्रदान करेगा ? विचारवान् व्यक्ति उन्हीं कार्यों में प्रवृत्त होता है, जिनसे उसका हित होता है । इस प्रकाश में शंका का निराकरण हो जाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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