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तीर्थकर क्षेत्रों से भी मोक्ष होता है ? यदि मोक्ष मानते हो, तो उनको भोगभूमि के स्थान में कर्मभूमि क्यों नहीं कहा गया है ? ।
इस प्रश्न का समाधान अत्यन्त सरल है। सर्वार्थसिद्धि का कथन ध्यान देने योग्य है, “कस्मिन् क्षेत्रे सिध्यन्ति ? प्रत्युत्पन्नग्राहिनयापेक्षया सिद्धिक्षेत्रे, स्वप्रदेशे, आकाश प्रदेशे वा सिद्धिर्भवति । भूतग्राहिनयापेक्षया जन्म प्रति पंचदशसु कर्मभूमिषु, संहरणं प्रति मानुषक्षेत्रे सिद्धिः" (अध्याय १०, सूत्र ६ की टीका) ।
प्रश्न-किस क्षेत्र में सिद्ध होते हैं ?
उत्तर-वर्तमान को ग्रहण करने वाले नय की अपेक्षा निर्वाणक्षेत्र से मुक्त होते हैं, अपनी आत्मा के प्रदेशों में मुक्त होते हैं, अथवा शरीर के द्वारा गृहीत आकाश के प्रदेशों से सिद्धि होती है । भूतकाल को ग्रहण करने वाले नय की अपेक्षा से पंद्रह कर्मभूमि में जन्म प्राप्त जीव वहां से सिद्ध होता है। वहां जन्म प्राप्त जीव को देव आदि अन्य क्षेत्रों में ले जावें, तो समस्त मनुष्यक्षेत्र निर्वाणभूमि है। इस कथन से शंका का निराकरण हो जाता है ।
महत्व की बात
सर्वार्थसिद्धि में एक और सुन्दर बात लिखी है, “अवसर्पिण्यां सुषम-दुःषमायाः अन्त्ये भागे दुःषमसुषमायाँ च जातः सिध्यति । न तु दुःषमायां जातो दुःषमायां सिध्यति । अन्यदा नैव सिध्यति । संहरणतः सर्वस्मिन्काले उत्सपिण्यामवसर्पिण्यां च सिध्यति” (१० अध्याय, सूत्र ६)--अवसर्पिणी काल में सुषम-दुःषमा नाम के तृतीय काल के अंतिम भाग में तथा दुःषम-सुषमा नामके चतुर्थकाल में जन्मधारण करने वाला मोक्ष जाता है । दुःषमा नामक पंचम काल में उत्पन्न हुआ पंचम काल में मुक्त नहीं होता । अन्यकालों में मोक्ष नहीं होता। किसी देवादि के द्वारा लाया गया जीव उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी के सभी कालों में सिद्ध पदवी को प्राप्त करता है। इस
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