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________________ तीर्थकर [ २७३ स्व का राज्य ___संसार में शरीरान्त होने पर शोक करने की प्रणाली है, किन्तु यहां आनंदोत्सव मनाया जा रहा है, कारण आज भगवान को चिरजीवन प्राप्त हुआ है । मृत्यु तो कर्मों की हुई है । वह आत्मा अाज अपने निज भवन में पाकर अनंत सिद्ध बंधुओं के पावन परिवार में सम्मिलित हुआ है । आज प्रात्मा ने स्व का राज्य रूप सार्थक 'स्वराज्य' प्राप्त किया है । प्रानन्द की वेला __ भगवान के अनंत आनन्द लाभ की वेला में कौन विवेकी व्यथित होगा ? इसी से देवों ने उस आध्यात्मिक महोत्सव की प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रानन्द नामका नाटक किया। इस आनन्द नाटक के भीतर एक रहस्य का तत्व प्रतीत होता है । सच्चा प्रानन्द तो कर्म राशि के नष्ट होने से सिद्धों के उपभोग में आता है । संसारी जीव विषय भोग द्वारा सुख प्राप्ति का असफल प्रयत्न करते हैं। भगवान अनंत अानंद के स्वामी हो गए । अञ्याबाध सुख की संपत्ति उनको मिली है। ऐसे प्रसंग पर सच्चे भक्त का कर्तव्य है कि अपने आराध्य देव की सफलता पर आनंद अनुभव करे । समाधि-मरण शोक का हेतु नहीं मिथ्यात्व युक्त मरण शोक का कारण है, समाधिमरण शोक का हेतु नहीं है। कहा भी है : मिथ्यादृष्टः सतोः जंतोमरणं शोचनाम हि । __ न तु दर्शनशुखस्य समाधिमरणं शुचे ॥६१ सर्ग, ६६॥ हरिवंशपुराण पंडित-पंडित मरण ___ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कायगुप्ति की पूर्णता पूर्वक शरीर का त्याग अयोगी जिनके पाया जाता है। उस मरण का नाम 'पंडित-पंडित' मरण कहा है । मिथ्यात्वी जीव को बालबाल कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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