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________________ तीर्थंकर [ २५१ समुद्घात-क्रिया हरिवंशपुराण में लिखा है जिस समय केवली की आयु अंतर्मुहूर्त मात्र रह जाती है और गोत्र आदि अघातिया कर्मों की स्थिति भी आयु के बराबर रहती है, उस समय सूक्ष्म-क्रिया-प्रतिपाति नाम का तीसरा शुक्ल ध्यान होता है । यह मन, वचन, काय की स्थूल क्रिया के नाश होने पर उस समय होता है जब स्वभाव से ही काय सम्बंधी सूक्ष्मक्रिया का अवलंबन होता है। अंतर्मुहुर्तशेषायुः स यदा भवतीश्वरः । तत्तुल्यस्थितिवेद्यादित्रितयश्च तदा पुनः ॥५६--६६१॥ समस्तं वागमनोयोगं काययोगं च बादरं । प्रहाप्यालंब्य सूक्ष्मं तु काययोगं स्वभावतः ॥७०॥ तृतीयं शुक्लसामान्यात्प्रथमं तु विशेषतः। सूक्ष्मक्रियाप्रतीपाति-ध्यानमारकंतुमर्हति ॥७१॥ तत्वार्थराजवातिक में अकलक स्वामी ने लिखा है; जब संयोग केवली की आयु अंतर्मुहूर्त प्रमाण रहती है और शेष वेदनीय, नाम तथा गोत्र इन कर्मत्रय की स्थिति अधिक रहती है, उस समय आत्म उपयोग के अतिशययुक्त साम्य भाव समन्वित विशेष परिणाम सहित महासंवर वाला शीघ्र कर्मक्षय करने में समर्थ योगी शेष कर्मरूपी रेणु के विनाश करने की शक्ति युक्त स्वभाव से दंड, कपाट, प्रतर, तथा लोक पूरण रूप आत्म प्रदेशों का चार समय में विस्तार करके पश्चात् उतने ही समयों में विस्तृत आत्म प्रदेशों को संकुचित करता हुआ चारों कर्मों की स्थिति-विशेष को एक बराबर करके पूर्व शरीर बराबर परिमाण को धारण करके सूक्ष्म काययोग को धारण करता हुआ सूक्ष्म-क्रिया-प्रतिपाति नाम के ध्यान को करता है । मूलग्रंथ के शब्द इस प्रकार हैं :--"यदा पुनरंतर्मुहूर्तशेषायुष्कस्तोऽधिकस्थितिविशेषकर्मत्र्यो भवति योगी, तदात्मोपयोगातिशयस्य सामायिकसहायस्य विशिष्टकरणस्य महासंवरस्य लघुकर्मपरिपाचनस्य शेषकर्मरेणु-परिशातनशक्ति - स्वाभाव्यात् दंड - कपाट - प्रतर- लोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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