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________________ २४८ ] तीर्थकर भरत-पुत्र युवराज अर्ककीति ने स्वप्न में देखा, एक महौषधि का वृक्ष स्वर्ग से आया था । मनुष्य का जन्म-रोग नष्टकर वह पुनः स्वर्ग में चला गया । गृहपतिरत्न ने देखा कि एक कल्पवृक्ष लोगों को मनोवाँछित पदार्थ देता था, अब वह कल्पद्रुम स्वर्गप्राप्ति के लिए तत्पर है । चक्रवर्ती के प्रमुख मन्त्री ने देखा कि एक रत्नदीप जीवों को त्न देने के पश्चात् आकाश में जाने के लिए उद्यत हो रहा है । सेनापति ने देखा, एक सिंह वज्र के पिंजरे को तोड़कर कैलाश पर्वत को उल्लंघन करने को लिए तैयार हुआ है । जयकुमार के पुत्र अनंतवीर्य । देखा कि त्रिलोक को प्रकाश करता हुआ तारकेश्वर अर्थात् चन्द्रमा ताराओं सहित जा रहा है। चक्रवर्ती की पट्टरानी सुभद्रा का स्वप्न था :-- यशस्वती-सुनंदाभ्यां साधं शक्र-मनःप्रिया। शोचंतीश्चिरमद्राक्षीत् सुभद्रा स्वप्नगोचरा ॥३३०॥ वृषभदेव भगवान की रानी यशस्वती और सुनन्दा के साथ शक्र अर्थात् इन्द्र की मनःप्रिया अर्थात् महादेवी (इन्द्राणी) बहुत काल पर्यन्त शोक कर रही है । स्वप्न-फल इन स्वप्नों का फल पुरोहित ने यह बताया :-- कर्माणि हत्वा निर्मूलं मुनिभिर्बहुभिः समं । पुरोः सर्वेपि शंसंति स्वप्नाः स्वर्गाप्रगामितां ॥३३३॥ ये समस्त स्वप्न यह सूचित करते हैं कि भगवान वृषभदेव समस्त कर्मों का निर्मूल नाशकर अनेक मुनियों के साथ मोक्ष पधारेंगे। प्रानन्द द्वारा समाचार इतने में आनन्द नाम के व्यक्ति ने चक्रवर्ती भरतेश्वर को भगवान का सर्व वृत्तान्त बताया कि :-- ध्वनौ भगवता दिव्य संहृते मुकुलीभवत् । कराम्बुजा सभा जाता पूष्णीव सरसोत्यसौ ॥३३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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