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तीर्थकर
२३८ ] ग्रंथों की अनुपलब्धि का कारण
कभी कभी मन में यह अाशंका उत्पन्न होती है, कि इतनी विशाल जैनों की ग्रंथराशि पहले थी, तो अब वह क्यों नहीं उपलब्ध होती है ? इतिहास के परिशीलन से पता चलता है, कि जैन-संस्कृति के विरोधी वर्ग ने जिस क्रूरता से ग्रन्थों का ध्वंस किया, उसका अन्य उदाहरण कहीं भी न मिलेगा ।' उस जैन-धर्म-विरोधी मनोवृत्ति के कारण जहाज भर-भर के जैन-ग्रन्थ नष्ट कर दिए के ग्रन्थ तुङ्गभद्रा तथा ताताचार्य ने लिखा था, कि हजारों ताड़पत्र गए । प्रोफेसर आर० कावेरी नदी में डुबा दिए गए थे। अत्याचार, प्रमाद तथा अज्ञान के कारण लोकोत्तर महान साहित्य नष्ट हो चुका । जो शेष बचा है, वह भी अनुपम है। उसके भीतर भी वही सर्वज्ञ वाणी का मथितार्थ भरा है, जिसके परिशीलन से आत्मा आनन्द और आलोक प्राप्त करती है । दिव्य-ध्वनि
भगवान की दिव्यध्वनि से अमृतरस का पान कर इन्द्र ने प्रभु की स्तुति की और कहा :
तव वागमृतं पीत्वा वयमद्यामराः स्फुटम् । पीयूषमिमिष्टं नो देव सर्वरुजाहरम् ॥२०--२६॥
हे देव ! आपके वचनरूपी अमृत को पीकर आज हम लोग वास्तव में अमर हो गए हैं, इसलिए सब रोगों को हरनेवाला आपका यह वचन रूप अमृत हम लोगों को बहुत ही इष्ट है । सौधर्मेन्द्र द्वारा मार्मिक स्तुति
सौधर्मेन्द्र ने भगवान की अत्यन्त मार्मिक स्तुति की। धर्म1. Outlines of Jainism by Justice J. L. Jaini page XXXVIII.
Several thousands of palmyra manuscripts have been thrown into the Kaveri or Tungabhadra. (English Jain Gazette page 178, XVI ]
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