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तीर्थकर उसी समय कुरुवंश के शिरोमणि महाराज श्रेयाँस, महाराज सोमप्रभ तथा अन्य राजाओं ने भी मुनिदीक्षा धारणकर वृषभसेन स्वामी के समान गणनायकत्व प्राप्त किया ।
ब्राह्मी प्रायिका
जिस सर्व परिग्रह त्यागवृत्ति को सिंह वृत्ति मान शृगाल स्वभाव वाले जीव डरा करते हैं, उस पदवी को निर्भय हो धारण करने में लोगों का साहस वृद्धिंगत हो रहा था। भरत महाराज की छोटी बहिन ब्राह्मी ने कुमारी अवस्था में ही वैराग्यभाव जागृत होने से प्रायिका (साध्वी) की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त की।
भरतस्यानुजा ब्राह्मी दीक्षित्वा मुर्वनुपहात् ।
गणिनीपदमार्याणां सा भेजे पूजितामरः ॥२४---१७५॥
गुरुदेव के अनुग्रह से भरत महाराज की छोटी बहिन कुमारी ब्राह्मी ने दीक्षा लेकर आर्याओं के मध्य गणिनी का पद प्राप्त किया था । आर्यिका ब्राह्मी की देवताओं ने पूजा की थी।
बाहुबलिकुमार की सगी बहिन सुन्दरी ने भी बहिन ब्राह्मी के समान दीक्षा धारण कर मातृजाति को गौरवान्वित किया था । श्रुतकीर्ति श्रावकोत्तम
___ उस समय श्रुतकीर्ति नामक गृहस्थ ने श्रावकों के उच्चव्रत ग्रहण किए थे । वह देशव्रती श्रावकों में प्रमुख था। आदिपुराणकार कहते हैं :--
श्रुतकीतिर्महाप्राज्ञो गहीतोपासकवतः । वेशसंयमिनामासीत् धौरेयो गहमधिनाम् ॥१७॥
प्रियव्रता नाम की गुणवती महिला ने श्राविकाओं के व्रत लेकर उच्च गौरव प्राप्त किया था। प्राचार्य कहते हैं :प्रियव्रता महिला-रल्न
उपात्तायुक्ता मेरा प्रयतात्मा प्रियव्रता। स्त्रीणां विशवकृतीन बभूमग्रेमी सती ॥१७॥
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