SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ ] तीर्थकर नवलब्धियों के विषय में आगम का कथन है कि ज्ञानावरण कर्म के क्षय होने से केवली भगवान को क्षायिकज्ञान रूप लब्धि का लाभ होता है । दर्शनावरण के नाश होने से अनंत दर्शन, दर्शन मोहनीय कर्म के अभाव होने पर क्षायिक सम्यक्त्व, चारित्र मोह के क्षय होने पर क्षायिक चारित्र, दानान्तराय के प्रभाव से क्षायिक दान, लाभान्तराय के नाश होने से क्षायिक लाभ, भोगान्तराय के नष्ट होने से क्षायिक भोग, उपभोगान्तराय के क्षय होने से क्षायिक उपभोग तथा वीर्यान्तराय के क्षय होने पर क्षायिक वीर्य रूप लब्धियाँ उत्पन्न होती हैं । ये नौ लब्धियाँ कर्मक्षय होने से क्षायिक भाव के नाम से कही जाती हैं। भोग-उपभोग का रहस्य भगवान ने दीक्षा लेते समय भोग तथा उपभोग की सामग्री का परित्याग किया था । केवलज्ञान की अवस्था में भोग तथा उपभोग का क्या रहस्य है ? वे प्रभु परम आकिंचन्य भाव भूषित हैं । उनके क्षायिक दान का क्या अर्थ है ? सब पदार्थों का संकल्पपूर्वक परित्याग करके परम यथाख्यातचारित्र की अत्यन्त उज्ज्वल स्थितिप्राप्त केवली के लाभ का क्या भाव है ? जो पदार्थ एक बार सेवन में आता है, उसे भोग कहते हैं, जैसे पुष्पमाला, भोजन आदि । जो पदार्थ अनेक बार सेवन में आता है, उसे उपभोग कहते हैं, जैसे वस्त्र, भवनादि । भगवान परम वीतरागी होने से सम्पूर्ण परिग्रह के पाप से परिमुक्त हैं, ममता के पिता मोह कर्म का वे क्षय कर चुके हैं, फिर भी उनकी ओर विश्व की अचिन्त्य तथा अद्भत विभूति का समुदाय आकर्षित होता है। उनका उन पदार्थों से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस बात का स्पष्ट प्रमाण यह है कि वे रत्नजटित हेमपीठ से चार अंगुल ऊँचाई पर अंतरिक्ष में विराजमान रहते हैं, तथा आत्म स्वरूप में निमग्न रहते हैं । विशाल समवशरण के मध्य रहते हुए भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy