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तीर्थकर
[ १९१ कल) के माध्यम से जनता के समीप जाता है और जनता उसे नल का पानी नाम प्रदान करती है । प्रतीत होता है कि भगवान की वाणी को भिन्न-भिन्न जीवों के समीप पहुँचा कर उसे सुखपूर्वक श्रवण योग्य बनाने आदि के पवित्र कार्य में अपनी सेवायें तथा सामर्थ्य समर्पण करने के कारण भगवान की सार्ववाणी को सार्वार्धमागधी नाम प्राप्त होता है । जब मागधदेव उस भगवद्वाणी की सेवा करते हैं, तो महान आत्मा की सेवा का उन्हें यह गौरव प्राप्त होता है कि उस श्रेष्ठ वाणी में सेवक के नाते उनका भी नाम आता है । समवशरण में जिस वाणी को सुनकर भव्य जीव अपनी भव बाधा को दूर करने योग्य बोध प्राप्त करते हैं, वह जिनेन्द्र देव के द्वारा उद्भूत हुई है और मागध देवों के सहकार्य से भव्यों के समीप पहुँची है। जब उस वाणी की श्रोताओं को उपलब्धि द्विविध कारणों से होती है, तब द्वितीय कारण को उस कार्य का प्राधा श्रेय स्थल दृष्टि से दिया जाना अनुचित प्रतीत नहीं होता।
कल्पना
____ कोई-कोई यह सोचते हैं कि राजगिरि जिस प्रांत की राजधानी थी उस मगध देश की भाषा के अधिक शब्द भगवान की दिव्य ध्वनि में रहे होंगे अथवा भगवान प्राकृत भाषा के उपभेद रूप अर्धमागधी नाम की भाषा में बोलते थे ।
समाधान
___ लोक रुचि के परितोष के लिए उपरोक्त समाधान देते हुए कोई कोई व्यक्ति देखे जाते हैं, किन्तु आगम की पृष्ठभूमि का उक्त समाधान को आश्रय नहीं है । सूक्ष्म तथा अतीन्द्रिय विषयों पर साधिकार एवं निर्दोष प्रकाश डालने की क्षमतासंपन्न आगम कहता है कि भगवान की वाणी किसी एक भाषा में सीमित नहीं रहती। सर्व-विद्या के ईश्वर सर्वत्र एक ही भाषा का उपयोग करेंगे और अन्य
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