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________________ तीर्थंकर [ १५३ मोह क्षय के पश्चात् घातियात्रय का क्षय मोहनीय कर्म के क्षय होने पर ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय ये तीन घातिया कर्म अन्तर्मुहूर्त में नाश को प्राप्त होते हैं । यही बात पूज्यपाद स्वामी ने इस प्रकार स्पष्ट की है, "प्रागेव मोहं क्षयमुपनीयान्तर्मुहूर्त क्षीणकषायव्यपदेशमवाप्य ततो युगपज्ज्ञान-दर्शनावरणान्तरायाणां क्षयं कृत्वा केवलमवाप्नोति' (सर्वार्थसिद्धि, अध्याय १०, सूत्र १)—पहले मोहनीय कर्म को क्षय करके अन्तर्मुहूर्तकाल पर्यन्त क्षीणकषाय नाम को प्राप्त करके युगपत ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय कर्म का विनाश करके केवलज्ञान को प्राप्त करते हैं। सर्वज्ञता की उपलब्धि में ज्ञानावरण का क्षय साक्षात् कारण है, किन्तु किन्तु इसके पूर्व मोहनीय कर्म का विनाश अनिवार्य है । वीतराग विज्ञानता ____ मोह क्षय के उपरान्त वीतराग विज्ञानता की प्राप्ति होती है। गृहस्थों को कभी कभी वीतराग बनने को कहा जाता है । गृहस्थावस्था में मोह क्षय असंभव है । मुनि पदवी को प्राप्त करके ही वीतराग विज्ञानता की प्राप्ति होती है। राग चारित्र मोह का भेद है। चारित्र धारण करने पर ही राग का अभाव होगा । अतः गृहस्थ के वीतरागता नहीं होगी। मोह का क्षय होने पर मुनिराज वीतराग विज्ञानतायुक्त होते हैं। गृहस्थ अपना लक्ष्य जैसे परमात्म पदवी को बनाता है, उसी प्रकार वह ध्येय रूप में वीतराग विज्ञानता को बना सकता है। आज के इस दुषमा काल म उत्पन्न हुअा गृहस्थ हो, या मुनि हो, उनको वीतराग विज्ञानता की प्राप्ति तो दूर, उस वीतराग विज्ञानज्योति युक्त आत्मा का दर्शन भी शक्य नहीं है। यदि कोई विदेह जाने योग्य तपस्या द्वार चारण ऋद्धि प्राप्त कर ले, तो अवश्य वीतराग विज्ञानता से समलंकृत साधुराज के दर्शन कर सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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