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________________ तीर्थंकर [ ११३ ली थी, वह वट वृक्ष आदर का पात्र हो गया । समवशरण में वह वट वृक्ष अशोक वृक्ष के रूप में महान् प्रतिष्ठा का स्थान बन गया । वह अष्ट प्रातिहार्यों में सम्मिलित किया गया । इन पदार्थों में स्वयं पूज्यता नहीं है । जो इन वृक्षों को स्वयं के कारण पूज्य मानता है, वह तत्वज्ञ नहीं माना गया है। सामायिक चारित्र धारण भगवान ने दीक्षा लेते समय सिद्ध भगवान को प्रणाम करते हुए सर्व सावद्य-योग त्याग रूप सामायिक चारित्र धारण किया था । महापुराण में लिखा है :-- कृत्स्नाद् विरम्य सावधाच्छितः सामायिकं यमम् । व्रत-गुप्ति-समित्यादीन् तभेदानाददे विभुः ॥१७--२०२।। समस्त पापारंभ से विरक्त होकर भगवान ने सामायिक चारित्र धारण किया ; उन्होंने व्रत, गुप्ति, समिति प्रादि चारित्र के भेद भी ग्रहण किए थे। दीक्षा लेते ही वे साम्राज्य रक्षा आदि के भार से मुक्त हो गए । साम्राज्य का संरक्षण अनेक चिंताओं एवं प्राकुलताओं का हेतु रहता है । दीक्षा लेते ही आत्मयोगी ऋषभनाथ भगवान को विलक्षण शांति प्राप्त हुई। उनके मन में ऐसी विरागता तथा विशुद्धता उत्पन्न हुई कि उन्होंने तत्काल छह माह का लम्बा उपवास ग्रहण कर लिया। उनकी बहिर्जगत् से तो पूर्ण विमुख दृष्टि है, वे अंतज्योति को जगाकर चुन चुनकर कर्म शत्रुओं का विनाश करने में तत्पर हैं । भगवान देखने में परम शांत हैं। प्रशम भाव के प्रशान्त महासागर तुल्य लगते हैं, किन्तु कर्म शत्रुओं का नाश करने में वे अत्यन्त दयाहीन हो गए हैं। क्रूरता पूर्वक चिरसंचित कर्मरूपी ईन्धन को वे ध्यानाग्नि में भस्म कर रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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