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________________ तीर्थंकर परिग्रह-त्याग तथा केशलोच भगवान ने यवनिका (पर्दा) के भीतर वस्त्र, आभूषणादि का परित्याग किया। उस त्याग में आत्मा, देवता तथा सिद्ध भगवान ये तीन साक्षी थे। महापुराण में लिखा है :--- __ तत् सर्व विभुरत्याक्षीत् नियंपेक्षं त्रिसाक्षिकम् ॥१७---१९६॥ भगवान ने अपेक्षा रहित होकर त्रिसाक्षीपूर्वक समस्त परिग्रह का त्याग कर दिया । अनन्तर भगवान ने पूर्व की ओर मुख करके पद्मासन हो सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार किया और पंचमुष्टि केशलोच किया। पंचअंगुली निर्मित मुष्टि के द्वारा संपादित केशलोच करते हुए वे पंचमगति को प्रस्थान करने को उद्यत परम पुरुष द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव तथा भावरूप पञ्चकाल-परावर्तनों का मूलोच्छेद करते हुए प्रतीत होते थे । महामौन व्रत अब ये प्रभु सचमुच में महामुनि, महामौनी, महाध्यानी, महादम, महाक्षम, महाशील, महायज्ञवाले तथा महामखयुक्त बन गए :--- महामुनिमहामौनी महाध्यानी महादमः। महालमः महाशीलो महायज्ञो महामखः । इन महामुनि प्रभु का मौन अलौकिक है । इनका मौन अब केवलज्ञान की उपलब्धि पर्यन्त रहेगा । इनकी दृष्टि बहिर्जगत् से अंतर्जगत् की ओर पहुँच चुकी है इसलिए राग उत्पन्न करने की असाधारण परिस्थिति पाने पर भी इन्होंने वीतराग वृत्ति को निष्कलंक रखा । इनके चरणानुरागी चार हजार राजाओं ने इनका अनुकरण कर दिगम्बर मुद्रा धारण की थी। परीषहों को सहने में असमर्थ हो वे भ्रष्ट होने लगे। और भी विशिष्ट परिस्थितियाँ समक्ष आईं। दुर्बल मनोवृत्ति वाला ऐसे प्रसंगों पर मोह के चक्कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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