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तीर्थंकर
को
मयूर को सुन्दर नृत्य करने की शिक्षा कौन देता है ? हंस 'सुन्दरता पूर्वक गमन करने में कौन शिक्षक बनता है ? पक्षियों को गगन गमन करने में तथा मत्स्यादि को विपुल जलराशि में विचरण करने की कला कौन सिखाता है ? निसर्ग सेही उनमें वे विशेषताएँ उद्भूत होती हैं । 'इसलिए धर्मशर्माभ्युदय में महाकवि हरिचंद्र पूछते हैं कि नैसर्गिक ज्ञान के भण्डार उन जगत्गुरु को शिक्षित करने में कौन गुरु हुआ ? कोई-कोई तीर्थंकर को साधारण श्रेणी का व्यक्ति समझ उनके पाठशाला में अभ्यास की बात लिखते हैं । यह धारणा प्रयोग्य है । ऐसी विचारधारा वीतराग ऋषि परम्परा के प्रतिकूल है । महापुराण के ये शब्द मनन योग्य हैं
वाङ्मयं सकलं तस्य प्रत्यक्षं वाक्प्रभोरभूत् ।
येन विश्वस्य लोकस्य वाचस्पत्यादभूद् गुरुः ।।१४ - - १८१ ॥
७४ ]
वे भगवान सरस्वती के एकमात्र स्वामी थे इसलिए उन्हें समस्त वाङ्मय (शास्त्र ) प्रत्यक्ष हो गए थे । इस कारण वे सम्पूर्ण विश्व के गुरु हो गए थे ।
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श्रुतं निसर्गतोस्यासीत् प्रसूतः प्रशमः श्रुतात् ।
ततो जगद्धितास्थासीत् चेष्टा सापालयत् प्रजाः ॥ १८४ ॥
उन प्रभु के शास्त्र का ज्ञान स्वयमेव उत्पन्न हो गया था । शास्त्र ज्ञान के फलस्वरूप प्रशम भाव उत्पन्न हुआ था । इससे उनकी चेष्टाएँ जगत् का हित करने वाली होती थीं । उन चेष्टाओं द्वारा वे प्रजाजन का पालन करते थे ।
प्रभु की विशेषता
उन ऋषभनाथ तीर्थंकर के विषय में महाकवि की यह सूक्ति हृदयहारिणी है
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१ कः पण्डितो नाम शिखण्डमण्डने मराललीलागतिदीक्षिकोऽथवा । मैefioज्ञाननिधेर्जगद्गुरोर्गुरुश्च शिक्षासु बभूव तस्य कः ||६ - १३ ॥
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