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________________ तीर्थंकर तीर्थंकरों में समानता का काररण इस प्रकाश में यह आशंका भी दूर हो जाती है कि सभी तीर्थंकर समान रूप के क्यों होते हैं ? एक आदमी का रूप-रङ्ग, ढङ्ग दूसरे से नहीं मिलता, किन्तु एक तीर्थंकर दूसरे से असमान नहीं दिखते, क्योंकि उत्कृष्ट साधना के द्वारा जिनश्रेष्ठ परमाणुओं द्वारा एक तीर्थंकर का शरीर - निर्माण होता है, वे ही साधन अन्य तीर्थकर को भी समुपलब्ध होते हैं । तीर्थंकर भगवान के जीवन के अन्तः बाह्य सौन्दर्य का चमत्कार यथार्थ में भगवती अहिंसा तथा सत्य की समाराधना का ही अद्भुत परिणाम है । जिन सन्तों या धर्म संस्थापकों का वर्तमान तथा प्रतीत जीवन हिंसामयी भावनाओं तथा प्रवृत्तियों पर अवस्थित रहता है, उनका रूप-रङ्ग, ढङ्ग आदि उनकी प्रांतरिक स्थिति के अनुरूप होता है । जीववध करते हुए भी जिनके मुख से संकोच रहित विश्वप्रेम की वाणी जगत् को सुनाई जाती है, उनके समीप अहिंसा का सौन्दर्य कैसे आनन्द और अभ्युदयों की वर्षा करेगा ? खोजा वर्ग के स्व ० आगाखान कहते थे - " शराब का मेरे मुख से सम्पर्क होते ही मेरे प्रभाववश जल रूप में परिवर्तन हो जाता है ।" एक जापानी प्रोफेसर ने सन् १९५६ में हमसे जापान में कहा था, "शराब और पानी में कोई अंतर नहीं है । मुखद्वार से भीतर जाकर पानी भी उसी तत्वरूप में परिवर्तित होता है, जिस रूप में शराब रहती है ।" पश्चिम का विख्यात दार्शनिक सुकरात सदृश विचारक व्यक्ति भी अहिंसा के अंतस्तत्व को हृदयंगम न कर विषपान द्वारा प्राण परित्याग के पूर्व अपने स्नेही क्रिटो ( Crito) से कहता है, कि मेरी एक अंतिम इच्छा तुम्हें पूर्ण करना है, “I owe a cock to Asclepius" मुझे सक्लिपियस देवता के यहाँ एक मुर्गा भेट करना था, अतः यह बलिदान का काम तुम पूरा कर देना । इस प्रकार दुनियाँ में प्रसिद्धि प्राप्त बड़े-बड़े धर्म तथा सांस्कृतिक प्रमुख लोगों की Jain Education International [ ६३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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