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________________ ५८ । तीर्थकर इन्द्र ने भगवान के जन्म महोत्सव का जो सजीव वर्णन किया, उसे सुनकर माता-पिता को अत्यन्त हर्ष हुअा । पिता मेरु पर क्यों नहीं गए ? __इस प्रसङ्ग में यह प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है, कि बुद्धिमान इन्द्र ने मेरु पर्वत पर प्रभु को वैभवपूर्वक ले जाते समय भगवान के पिता को ले जाने के कार्य में क्यों प्रमाद किया ? उस महोत्सव को प्रत्यक्ष देखकर पिता को कितना आनन्द होता ! माता ने पुत्र को उत्पन्न किया है। भगवान के अतुल बल था, इससे उनको मेरु पर ले जाना ठीक था, किन्तु माता की शरीर स्थिति ऐसी नहीं होगी, जो उनको मेरु की यात्रा कराई जाय । यह कठिनता पिता के विषय में उत्पन्न नहीं होती। भगवान के पिता का संहनन भी श्रेष्ट था । कर्मभूमि सम्बन्धी स्त्री होने से माता के वनवृषभ नाराच, वज्र नाराच तथा नाराच संहनन त्रय का अभाव था, "अन्तिमतिय-संहडणस्सुदनो पुण कम्मभूमिमहिलाणं । आदिमतिगसंहणणं णस्थित्ति जिणेहिंणिहिट्ठ" (कर्मकांड गोम्मटसार, ३२); अतएव जन्मोत्सव में भगवान के पिता को नहीं ले जाने का क्या रहस्य है ? समाधान इस समस्या का समाधान विचारते समय यह प्रति-प्रश्न उठता है, कि यदि भगवान के पिता को मेरुगिरि पर ले गए होते तो क्या परिणाम निकलता ? भगवान के पिता भगवान की अपार सामर्थ्य को मोहवश पूर्ण रीति से नहीं सोच सकते थे । तत्काल उत्पन्न बालक को लोख योजन उन्नत पर्वत के शिखर पर विराजमान करके एक हजार आठ विशाल सुवर्ण कलशों से उनका अभिषेक होना कौन पिता पसन्द करेगा ? ममतामय पिता का हृदय अनिष्ट की आशंकावश या तो अभिषेक करने में विघ्नरूप बनता अथवा उनकी ऐसी सोचनीय अवस्था सम्भव थी, जो इस प्रानन्द सिंधु में निमग्न समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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