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माया - मात्रा । मीयतेऽसौ मीयते वाऽनयेति माया ।
जो मापा जाता है अथवा जिससे मापा जाता है, वह मात्रा है । मार- कामदेव । खणे खणे मारयतीति मारो।
जो क्षण-क्षण में मारता है, वह मार / कामदेव है ।
(आचू. पृ. १०८ )
माहण - माहन, अहिंसक मा हणह सव्वसत्तेहिं भणमाणो अहणमाणो य माहणो भवति । किसी सत्त्व का हनन मत करो, ऐसा कहने वाला माहन कहलाता है अथवा जो किसी का हनन नहीं करता, वह 'माहन' होता है ।
( सूचू. १ पृ. २४६ )
मीसियाकहा- मिश्रकथा । धम्मो अत्थो कामो, उवइस्सइ जत्थ सुत्त कव्वेसु ।
लोगे वेदे समए, सा उ कहा मीसिया नामं ॥
मुट्ठि - मुष्टि । अंगुटुंगुलितलसंघातो मुट्ठी ।
जिन सूत्रों, काव्यों तथा लौकिक ग्रन्थों - रामायण आदि में, यज्ञ आदि क्रियाओं में तथा सामयिक ग्रन्थों - तरंगवती आदि में धर्म, अर्थ और काम- इन तीनों का कथन किया जाता है, वह मिश्रकथा है।
(दशनि. १७९)
अंगूठे और अंगुलि का संघात होना मुष्टि है।
मुनि - मुनि। मुणेति जगं तिकालावत्थं मुणी ।
जो त्रिकालावस्थित जगत् को जानता है, वह मुनि है ।
मनुते मन्यते वा धर्माधर्मानिति मुनिः ।
०
धर्म और अधर्म का मनन करने वाला मुनि होता है।
• सावज्जं न भासति त्ति मुणी ।
सावज्जेसु मोणं सेवति त्ति मुणी ।
जो सावद्य वाणी नहीं बोलता, वह मुनि है ।
मुक्त - मुक्त | बाहिरऽब्धंतरेहि गंथेहिं विप्पमुक्को मुत्तो ।
०
बाह्य और आभ्यन्तर ग्रंथि से रहित मुक्त कहलाता है। ज्ञानावरणीयादिकर्मबन्धनाद्वियुक्तो मुक्तः ।
ज्ञानावरणीय आदि कर्मबंधन से विमुक्त मुक्त कहलाता है।
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०
मुम्मुर - मुर्मुर । करिसगादीण किंचि सिट्ठो अग्गी मुम्मुरो ।
निर्युक्तिपंचक
०
मुम्मुरो नाम जो छाराणुगओ अग्गी सो मुम्मुरो । कंडे की अग्नि या क्षारादिगत अग्नि-कण को मुर्मुर कहते हैं ।
( उचू. पृ. १३३)
• विरलाग्निकणं भस्म मुर्मुरः ।
वह राख जिसमें विरल अग्निकण हो, मुर्मुर कहलाती है। मुम्मुही - मुन्मुखी ( जीवन की एक अवस्था ) । विणओवक्कमंतो मूक इव भाषते जिस अवस्था में व्यक्ति मूक की भांति बोलता है, वह मुन्मुखी है ।
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(दचू.प. ३९ )
(दशअचू. पृ. ३८, दशजिचू. पृ. ७४)
(दशअचू. पृ. २३४)
( सूटी. पृ. ९७ )
( आचू. पृ. १०४)
( उचू. पृ. २०३ )
(दशअचू पृ. ८९, दशजिचू. पृ. १५६ )
(दशहाटी. प. १५४) मुम्मुही ।
( दचू. प. ३)
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