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________________ निर्युक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण ७१ यह गाथा अनुष्टुप् छंद में निबद्ध है। अनुष्टुप् के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं किन्तु यहां नौ वर्ण हैं अत: 'सरिसव' के स्थान पर 'सस्सव' पाठ अधिक संगत लगता है । 'सस्सव' पाठ से मौलिक अर्थ का ह्रास भी नहीं होता क्योंकि सर्षप के लिए सस्सव और सरिसव दोनों शब्दों का प्रयोग मिलता है । इसी प्रकार 'अगणी निव्वेय मुग्गरे' (उनि ८८ ) में नौ वर्ण होते हैं, जिसमें पांचवां वर्ण दीर्घ है, जबकि अनुष्टुप् में पांचवां वर्ण ह्रस्व होना चाहिए। यहां 'अग्गी निव्वेय मुग्गरे' पाठ छंद की दृष्टि से सम्यक् प्रतीत होता है। हस्तप्रतियों में पाठ न मिलने के कारण परिवर्तन का निर्देश हमने मूलपाठ में न करके टिप्पण में कर दिया है। मूल पाठ में परिवर्तन न करने का एक मुख्य कारण यह रहा कि बिना प्रमाण परिवर्तन करने से ग्रंथ की मौलिकता और रचनाकार के प्रति न्याय नहीं होता। दूसरा कारण यह भी है कि वेदों में सात, नौ और दस वर्णों के अनुष्टुप् चरण भी मिलते हैं अत: यह भी संभव है कि स्वयं रचनाकार ने ही ऐसे प्रयोग किए हों । निर्युक्ति - साहित्य में भी ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जैसेदोमासकए कज्जं (उनि २४९) में सात ही वर्ण हैं । छंद की दृष्टि से नियुक्तिकार ने अनेक स्थलों पर दीर्घ मात्रा का ह्रस्वीकरण एवं ह्रस्व मात्रा का दीर्घीकरण भी किया है, जैसे कम्मे नोकम्मे या(उनि ६७) यहां अकार का आकार हुआ है। ते होंती पोंडरीगा उ (सूनि १४८) यहां इकार का ईकार हुआ है। सरिराई ( आनि २४० ) यहां ईकार का इकार हुआ है I कहीं कहीं वर्णों का द्वित्व भी हुआ है, जैसे—– सच्चित्त आदि । अनेक स्थलों पर छंद के कारण विभक्ति एवं वचन में व्यत्यय भी मिलता । कहीं-कहीं टीकाकार ने इसका उल्लेख भी किया है। छंद की दृष्टि से नियुक्ति में अनेक स्थलों पर निर्विभक्तिक प्रयोग भी मिलते हैं। छंदानुलोम के कारण अनेक स्थलों पर इ, जे, मो, च, य आदि पादपूर्ति रूप अवयवों का प्रयोग भी हुआ है। प्राकृत साहित्य में अलाक्षणिक मकार के प्रयोग तो अनेक मिलते हैं लेकिन नियुक्तिकार ने छंद की दृष्टि से अलाक्षणिक बिंदु का प्रयोग भी किया है। मज्जाउज्जं (उनि १४५) कहीं कहीं मात्रा कम करने के लिए बिंदु का लोप भी हुआ है अरई अचेल इत्थी' (उनि ७६) कसाय वेदणं* (उनि ५३) कहीं कहीं नियुक्तिकार ने छंदों का मिश्रण भी किया है। एक ही गाथा में अनुष्टुप् और आर्या— दोनों का प्रयोग हुआ है। जैसे तीन चरण आर्या के और एक चरण अनुष्टुप् का । इसी प्रकार कहीं तीन अनुष्टुप् के तथा एक चरण आर्या का, जैसे—– आनि ३६४ में प्रथम चरण अनुष्टुप् तथा शेष तीन चरण आर्या में हैं। १. वैदिक ग्रंथों में जिस चरण में एक अक्षर कम या अधिक पाताल १७/२) । होता है, उसे क्रमश: निचित और भूरिक कहा जाता है २. उशांटी प १४२; मज्जाउज्जं बिंदोरलाक्षणिकत्वात् । उसे विराज ३. उशांटी प. ७६; अचेल त्ति प्राकृतत्वाद् बिंदुलोपः । प्रातिशाख्य ४. उशांटी प ३४ कसाय वेदनं प्राकृतत्वाद् बिंदुलोपः । तथा जिसमें दो अक्षर कम या अधिक हों और स्वराज्य कहते हैं ( शौनकॠक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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