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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं है। वहां वे एक उपाश्रय में गए साध्वियों को वंदना की और उनके सम्मुख बैठ गये । साध्वियों ने उन्हें उपदेश दिया कि मनुष्य जन्म प्राप्त कर, धर्म और अधर्म को जानकर सकल सुख के कारण धर्म में प्रयत्न करना चाहिये। धर्मकथा की समाप्ति पर देवता ने कहा- 'अब राजभवन चलते हैं। वहां तुम्हें तुम्हारे बेटे का मुंह दिखा दूंगा।' मदनरेखा ने कहा- 'संसार बढ़ाने वाले स्नेह से क्या लाभ? मैं प्रव्रज्या ग्रहण करूंगी।' तुम्हें जो रुचिकर लगे वह करो ऐसा कहकर देवता अपने कल्प में लौट गया। मदनरेखा ने साध्वियों के समक्ष दीक्षा ग्रहण कर ली। उसका नाम सुव्रता रखा गया। वह दीक्षित होकर तप और संयम से स्वयं को भावित करने लगी। इधर वह बालक पद्मरथ राजा के यहां सुखपूर्वक बढ़ने लगा। विपक्षी राजा पद्मरथ के प्रति विनम्र हो गए अतः राजा ने बालक का गुणनिष्पन्न नाम नमि रख दिया। वह पांच धाइयों से परिवृत होकर सुखपूर्वक बढ़ने लगा। जब वह आठ वर्ष का हुआ तभी सब कला - शास्त्र में निपुण हो गया। इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न देवांगनाओं के रूप को लज्जित करने वाली एक हजार आठ कन्याओं के साथ विषय-सुख का अनुभव करता हुआ वह समय बिताने लगा । पद्मरथ राजा भी संसार की असारता को जानकर नमिकुमार को विदेह जनपद का राजा बनाकर स्वयं संयमश्री का वरण कर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया। नमिराजा राज्य का सम्यक् प्रकार से पालन करने लगे। इधर मणिरथ को उसी रात में सांप ने डस लिया। मरकर वह चौथी नारकी में उत्पन्न हुआ। सामंत और मंत्रियों ने चन्द्रयश को राजा बना दिया। चन्द्रयश राज्य का भलीभांति परिपालन करने लगा । ५६७ एक बार नमि राजर्षि के राज्य का प्रधान हाथी आलानस्तंभ को तोड़कर विंध्य अटवी की ओर भाग गया। वह सुदर्शनपुर नगर के निकट से निकल रहा था । चन्द्रयश राजा की अश्वसेना ने जाते हुए हाथी को देखा। राजा को यह बात बताई गई । चन्द्रयश हाथी को पकड़कर नगर में लेकर आ गया । गुप्तचरों ने नमि राजा को सारा वृत्तान्त बताया। उन्होंने कहा - 'धवल हस्ती को चन्द्रयश ने पकड़ लिया है अतः आप ही प्रमाण हैं । आज्ञा दें हम क्या करें?' नमि राजा ने चन्द्रयश के पास दूत भेजकर कहलवाया - ' यह धवल हस्ती मेरा है अतः इसे वापिस भेजें।' नमि के दूत ने चन्द्रयश को यह बात बताई। चन्द्रयश ने कहा- 'रत्नों पर किसी का नाम नहीं लिखा जाता। जो अधिक बलशाली है, वही उसका स्वामी है । नीतिकार कहते हैं ·1 को देइ कस्स दिज्जइ, कमागया कस्स कस्स व निबद्धा । विक्कमसारेहि जिए, भुज्जह वसुहा नरिंदेहिं ॥ वसुधा को कौन किसे देता है ? क्रमागत यह वसुधा किस-किस के साथ निबद्ध नहीं हुई। जो पराक्रमी नरेन्द्र होते हैं, वे ही इसका उपभोग भी करते हैं । Jain Education International तिरस्कृत और सम्मानित होकर दूत मिथिला नगरी में आ गया। चन्द्रयश की सारी बात राजा नमि को बताई गयी । कुपित नमि राजा ने सेनाबल के साथ चन्द्रयश पर आक्रमण कर दिया। इधर चन्द्रयश राजा नमि को आक्रमण के लिए आया जानकर सेना के साथ प्रस्थित हुआ। सामने अपशकुन देखकर वह रुक गया। मंत्रियों ने चन्द्रयश राजा को कहा कि नगरद्वार बंद करके हम दुर्ग में रह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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