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________________ ५१६ नियुक्तिपंचक अरे वन देवताओ ! मैंने जनार्दन को तुम्हें समर्पित किया था, तुम्हारी ऐसी उपेक्षा क्या उचित है? अरे जनार्दन ! आओ तुम सुना-अनसुना क्यों कर रहे हो? मैंने तुम्हारा क्या अपराध किया है? देवताओ! यह मेरा भाई कृष्ण मुझ पर कुपित हो गया है अत: करुणा से इसे प्रसन्न करो। हे सहोदर! सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा है। उठो, संध्योपासना का समय हो गया है। उत्तमपुरुष संध्यावेला में नहीं सोते। अत: उठो, अंधियारी काली रात आ गई है। क्रूर हिंसक प्राणी चारों ओर घूम रहे हैं। गीदड़, सियार शब्द करते हुए घूम रहे हैं।' इस प्रकार प्रलाप करते हुए प्रात: हो गया। बलदेव पुनः कृष्ण को संबोधित कर कहने लगे-'भाई! उठो, सूर्य उग गया है।' जब कृष्ण नहीं उठे तो स्नेह से विमूढ़ बना हुआ बलदेव कृष्ण के मृतक शरीर को अपने कंधे पर रखकर गिरि कानन में घूमने लगा। घूमते-घूमते वर्षाकाल आ गया। बलदेव का सिद्धार्थ नामक सारथि देवलोक को प्राप्त हुआ। अवधिज्ञान लगाकर उसने बलदेव को देखा। अत्यंत खेद के साथ उसने चिंतन किया-'स्नेहानुराग से किस प्रकार बलदेव वासुदेव कृष्ण के मृतक शरीर को ढो रहे हैं? इसलिए भातृवत्सल इस बलदेव को मैं प्रतिबोध दूंगा। तब देव ने पर्वत पर रथ को उतारते हुए एक पुरुष की विकुर्वणा की। वह रथ टेढ़ा-मेढ़ा चलता हुआ पर्वत पर भग्न नहीं हुआ बल्कि समभूमि पर उसके सैकड़ों टुकड़े हो गए। वह देव उन टुकड़ों का संधान करने लगा। यह देख बलदेव ने कहा-'अरे मूढ़पुरुष! यह रथ गिरितट पर भग्न नहीं हुआ लेकिन सममार्ग पर भग्न हुआ है अतः खंड-खंड बने इस रथ का तुम कैसे संधान कर सकते हो?' देव ने कहा-'यह कृष्ण अनेक हजार योद्धाओं के द्वारा भी पराजित नहीं हआ वह आज युद्ध के बिना भी मर गया है। जब यह जीवित हो जाएगा तो रथ भी पुन: नवीन हो जाएगा।' पुन: वह पुरुष शिलापट्ट पर पद्मिनी को रोपने लगा। बलदेव ने कहा-'शिलापट्ट पर रोपी हुई पद्मिनी कैसे उगेगी?' देव ने कहा-'जब यह तुम्हारे कंधे पर स्थित मृतक जी उठेगा तब कमलिनी भी उग जाएगी।' थोड़ी दूर जाने पर एक ग्वाले को केवल अस्थिमय गायों को हरी घास देते हुए देखा। बलदेव ने कहा- 'ये गायें हड्डियों का ढांचा मात्र हैं क्या ये हरी घास से पुनः जी सकती हैं?' देव ने कहा-'जब यह तुम्हारा भाई कृष्ण जी उठेगा तब गायें भी जी जाएंगी। तब बलदेव के ज्ञानतंतु झंकृत हुए और उसने सोचा-क्या मेरा अपराजित भाई मर गया? वनान्तर में स्थित कौन मुझको ऐसा कह रहा है? तब देव सिद्धार्थ के रूप में उपस्थित होकर बोला-'मैं पूर्वभव में आपका सारथि सिद्धार्थ था। तीर्थंकर अरिष्टनेमि की कृपा से मैं देवगति में उत्पन्न हुआ। आपने मुझे पहले कहा था-'जब मैं विपत्ति में पड़े तब तुम मुझे प्रतिबोधित करना।' इसीलिए मैं आपको प्रतिबोध देने यहां आया हूं। आप शोक को छोड़कर धैर्य को धारण करें। यदि आप जैसे पुरुष भी शोक से विह्वल होंगे तब संसार में कौन स्थिर रह पाएगा? धैर्य आत्मगुण है। संसार में कोई ऐसा प्राणी नहीं है, जिसने इस स्वच्छंद और वैरी यमराज से कदर्थना प्राप्त न की हो। इसलिए अपने आपको स्थिर करो। स्वामी अरिष्टनेमि ने पहले ही कह दिया था कि जराकुमार से कृष्ण की मृत्यु होगी। वैसा ही हो गया।' बलदव ने पूछा-जराकुमार ने कृष्ण को कब मारा? देव ने जराकुमार की सारी बात बतायी और उसे पांडवों के पास भेजा तब तक का सारा वृत्तान्त कह सुनाया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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