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________________ ४८६ नियुक्तिपंचक में घुमाया। जिस वृक्ष के नीचे राजपुत्र सो रहा था उस वृक्ष की छाया स्थिर थी। घोड़ा वहां आकर रुका और हिनहिनाने लगा। वह राजकुमार उस नगर का राजा बन गया। उसने सभी मित्रों को बुला भेजा। वह विपुल संपत्ति का स्वामी बन गया। २६. दृढ़ श्रद्धा राजा श्रेणिक के सम्यक्त्व की प्रशंसा देवराज इन्द्र ने की। एक देवता उस प्रशंसा को सह नहीं सका। वह नगर के बाहर एक तालाब के किनारे साधु के रूप की विकुर्वणा कर मछलियों को पकड़ने बैठ गया। श्रेणिक उसको निवारित करता है और समझाता है । पुनः वह देव एक गर्भवती साध्वी के रूप में श्रेणिक के सामने उपस्थित होता है। श्रेणिक उसे तलघर में ले जाकर प्रसूतिकर्म करवाता है। उस प्रसूतिकर्म को पूर्णरूप से गुप्त रखने के लिए सारा कार्य वह स्वयं करता है। देव मरी हुई गाय जैसी दुर्गन्ध की विकुर्वणा करता है लेकिन श्रेणिक का मन सम्यक्त्व से विचलित नहीं होता। साध्वी का रूप छोड़कर, प्रसन्न होकर दिव्य ऋद्धि वाले देव ने कहा-'भो श्रेणिक ! तुम्हारा. जन्म सफल है, जो प्रवचन पर तुम्हारी इतनी दृढ़ भक्ति है।'२ २७. स्वाध्याय में काल और अकाल का विवेक . (क) एक मुनि कालिकश्रुत का स्वाध्याय कर रहा था। रात्रि का पहला प्रहर बीत गया। उसे इसका भान नहीं रहा। वह स्वाध्याय करता ही गया। एक सम्यग्दृष्टि देवता ने सोचा कि यह मुनि अकाल में स्वाध्याय कर रहा है। कोई मिथ्यांदृष्टि देव इसको ठग न ले, इसलिए उसने छाछ बेचने वाले ग्वाले का स्वांग रचा। छाछ लो, छाछ लो- यह कहता हुआ वह ग्वाला उस मार्ग से निकला। वह बार-बार उस मुनि के उपाश्रय के पास आता-जाता रहा। यह छाछ बेचने वाला मेरे स्वाध्याय में बाधा डाल रहा है-यह सोचकर मुनि ने कहा-'अरे अज्ञानी ! क्या यह छाछ बेचने का समय है? समय की ओर ध्यान दो।' तब उसने कहा-'मुनिवर्य! क्या यह कालिकश्रुत का स्वाध्याय-काल है? मुनि ने यह बात सुनी और सोचा-'यह कालिकश्रुत का स्वाध्याय-काल नहीं है। आधी रात बीत चुकी है।' मुनि ने प्रायश्चित्त स्वरूप-'मिच्छा मि दुक्कडं' का उच्चारण किया। देवता बोला-'फिर ऐसा मत करना, अन्यथा तुम तुच्छ देवता से ठगे जाओगे। अच्छा है, स्वाध्यायकाल में ही स्वाध्याय करो न कि अस्वाध्याय-काल में।'३ (ख) एक गृहस्थ खेत में सूअरों को डराने के लिए सींग बजाता था। एक बार अवसर देखकर चोर उसकी गायों को चुराकर ले जा रहे थे। प्रतिदिन की भांति उस समय उसने सींग बजाया। सींग की ध्वनि सुनकर 'चोर गवेषक आ गया है' यह सोचकर चोर गायों को छोड़कर भाग गए। प्रातः काल उसने गायों को देखा और उन्हें घर ले गया। अब सींग बजाता हआ वह क्षेत्र और गायों की रक्षा करने लगा। प्रतिदिन सींग बजाते रहने के कारण चोर यथार्थ स्थिति समझ गए। उन्होंने रुष्ट होकर उसे पीटा और गायों को भी साथ में ले गए। १. दशनि.१६४, अचू.पृ. ५४, हाटी.प. १०७-१०९। ३. दशनि.१५८, अचू.पृ. ५१, हाटी.प. १०३,१०४। २. दशनि.१५७, अचू.पृ. ५०,५१, हाटी.प. १०२,१०३। ४. दशनि.१५८, अचू.पृ. ५१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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