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परिशिष्ट ६ : कथाएं
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पश्चात्ताप
शान्तचित्त है । असकृत्य करने वाले हमने इसकी आशातना की है । वे मन ही मन करने लगे । इस प्रकार शुभ अध्यवसायों के कारण उनके आवारक कर्मों का क्षय हुआ और उन सबको कैवल्य की प्राप्ति हो गई ।'
६. सत्यप्रतिज्ञ महिला ( अभयकुमार और वृद्धकुमारी )
राजगृह नाम का नगर था। वहां श्रेणिक राजा राज्य करता था। रानी ने एक बार राजा से कहा - 'एक खंभे वाला प्रासाद निर्मित करवाएं ।' राजा ने अनेक बढ़इयों को प्रासादनिर्माण का आदेश दिया । बढ़ई उपयुक्त काठ की खोज करने जंगल में गए । अभयकुमार साथ में था । वहाँ उन्होंने सीधा-सरल एक महान् वृक्ष देखा । वह लाक्षणिक था । उन्होंने वहाँ धूप-दीप कर कहा – 'जो इस वृक्ष का अधिष्ठाता देव है, वह हमें दर्शन दे तो हम इस वृक्ष को नहीं काटेंगे | यदि देव साक्षात् दर्शन नहीं देंगे तो हम इसे काट डालेंगे ।'
वृक्षवासी वाणव्यंतर देव अभयकुमार को दर्शन देकर बोला -- ' मैं राजा के लिए एक खंभे वाला प्रासाद बना दूंगा और सभी ऋतुओं के अनुकूल सब प्रकार की वनजातियों से युक्त एक antar भी बना दूंगा। तुम इस वृक्ष को मत काटो । इस प्रकार देव ने एक खंभे वाला प्रासाद निर्मित कर दिया और साथ ही साथ एक सुन्दर बगीचा भी बना दिया ।
एक बार एक चाण्डा लिन को अकाल आम खाने का दोहद उत्पन्न हुआ । उसने अपने पति से आम लाने को कहा । उस समय आम का मौसम नहीं था । चण्डाल राजा के उस सर्व ऋतुओं में पुष्पित और फलित रहने वाले उद्यान के पास गया और अवनामिनी विद्या के द्वारा आम की शाखा नीचे की । फल तोड़े और उन्नामिनी विद्या से शाखा को पूर्ववत् करके चला गया ।
प्रातः राजा ने देखा कि आमों की चोरी हो गई है पर किसी मनुष्य के पदचिन्ह वहाँ नहीं है । राजा ने सोचा- 'क्या कोई मनुष्य यहाँ चोरी कर गया ? क्या उसमें यह शक्ति है कि वह आए और पदचिन्ह अंकित न हो। यदि ऐसा शक्तिधर कोई मनुष्य है तो वह मेरे अन्तःपुर में भी धृष्टता कर सकता है ।
राजा ने तत्काल अभयकुमार को बुलाकर कहा - 'सात दिनों के भीतर चोर को पकड़कर नहीं लाओगे तो तुम जीवित नहीं रह सकोगे । यह सुनकर अभयकुमार चोर की खोज में लग
गया ।
एक दिन अभयकुमार ने देखा कि एक स्थान पर नर्तक नृत्य करना चाहता है और लोग इकट्ठे हो रहे हैं । वहां जाकर अभयकुमार ने एकत्रित लोगों से कहा - 'नट तैयार होकर आता है तब तक मेरी एक कथा सुनो
एक नगर में एक दरिद्र सेठ रहता था । उसकी पुत्री वृद्धकुमारी अत्यन्त रूपवती थी । वह श्रेष्ठ पति के लिए कामदेव की अर्चना करती थी । एक दिन चोरी से फूल तोड़ते समय माली ने उसे देख लिया । जब माली उसको पकड़कर कदर्थना करने लगा तब वह बोली- 'तुम्हारे भी बहिन, भानजी हैं, उनकी तरह ही मुझको समझो और मुझ कुमारी की कदर्थना मत करो । माली
१. दशअचू पृ. २१,२२ हाटी प. ३७-३९ ।
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