SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 538
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. मैं प्राचीनगोत्रीय, अन्तिम श्रुतज्ञानी (चतुर्दशपूर्वी-सकल श्रुतज्ञान के ज्ञाता) भद्रबाहु को वंदना करता हूं। वे दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प तथा व्यवहार-इन तीनों सूत्रों के कर्ता थे। २-४. (दशा शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ।) भावदशा के दो प्रकार हैं-आयुविपाकदशा तथा अध्ययनदशा। द्रव्यदशा है-वस्त्र की किनारी। आयुविपाकदशा के दस प्रकार हैं। शतायु व्यक्ति के आयुष्य के दस विभाग किए हैं। वे ये हैं(१) बालादशा (५) प्रज्ञादशा (९) मुन्मुखीदशा (२) मन्दादशा (६) हायनीदशा (१०) शायनीदशा (३) क्रीडादशा (७) प्रपंचादशा (४) बलादशा (८) प्रारभारादशा ये दस आयुविपाकदशाएं हैं। ये स्व-स्व नाम और लक्षणों से जानी जाती हैं। आगे क्रमशः मैं अध्ययनदशा-दशाश्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों का क्रमशः वर्णन करूंगा। ५. अध्ययनदशा के दो प्रकार हैं-छोटी और बड़ी। छोटी अध्ययनदशा है-प्रस्तुत आचारदशा। बड़ी अध्ययनदशा है-ज्ञाताधर्मकथा आदि छह अंग आगम-(ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण तथा विपाकश्रुत)। जिस प्रकार वस्त्र की विभूषा के लिए उसकी दशा-किनारी होती है, वैसे ही ये दशाएं हैं। ६. स्थविर-आचार्य भद्रबाहु ने शिष्यों पर अनुग्रह कर ये छोटी अध्ययनदशाएं इस आचारदशा में निर्यढ की हैं। जो जीव दशाओं को जानने में उपयुक्त है, वह भावदशा है । ७. मैंने दशा का समुच्चयार्थ संक्षेप में कहा है। अब प्रत्येक अध्ययन का वर्णन करूंगा। ८. प्रस्तुत सूत्र के दस अध्ययनों के नाम ये हैं(१) असमाधि (४) गणि-गुण (७) साधु-प्रतिमा (२) शबलत्व (५) मन:समाधि (८) कल्प (३) अनाशातना (६) श्रावक-प्रतिमा (९) मोह (१०) निदान प्रथमदशा : असमाधि स्थान ९. जिस द्रव्य से समाधि होती है, वह द्रव्य अथवा एक या अनेक द्रव्यों का परस्पर अविरध अथवा तुलारोपित द्रव्य के साथ जो द्रव्य आरोपित होकर तुला के दोनों पलड़ों को सम रखता है, वह द्रव्य, द्रव्यसमाधि है। जीव के प्रशस्त योगों से होने वाली सुसमाहित अवस्था भावसमाधि है। १. आचार्य भद्रबाहु ने दृष्टिवाद के नौवें पूर्व के असमाधिस्थान नामक प्राभत से 'असमाधिस्थान' का तथा अन्यान्य सभी दशाओं का उन-उन नाम वाले प्राभूतों से नि!हण किया। (दश्रुच प० ३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy