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________________ निर्युक्तिपंचक ५२ भाष्य के साथ मिल गयीं हैं। आकार में यह सबसे छोटी नियुक्ति है पर संक्षिप्त शैली में आचार विषयक अनेक विषयों का वर्णन इसमें हुआ । नियुक्ति के प्रारम्भ में दशा शब्द की विस्तृत व्याख्या की गयी 1 निर्युक्तिकार ने समाधि, स्थान, शबल, आशातना, गणी, संपदा, चित्त, उपासक, प्रतिमा आदि शब्दों की निक्षेपपरक व्याख्या की है । उपासकप्रतिमा नामक षष्ठ अध्ययन में उपासकों के भेदों का वर्णन है, साथ ही उपासक और श्रावक क्या अंतर है, इसका तात्त्विक विवेचन किया गया है । नियुक्तिकार ने प्रसंगवश अनेक प्रकार की प्रतिमाओं का भी उल्लेख किया है । एकलविहारप्रतिमा स्वीकार करने वाले मुनि के गुण विशिष्ट साधुत्व के पैरामीटर हैं। आठवीं पज्जासवणा दशा में पर्युषणाकल्प का व्याख्यान किया गया है। नियुक्तिकार ने साधु के विहार- कल्प, वर्षावास स्थापित करने एवं विहार न करने के कारणों का विस्तार से वर्णन किया है तथा जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वर्षावास के विकल्प भी प्रस्तुत किए हैं । द्रव्य स्थापना में आहार, विगय, मात्रक आदि सात द्वारों की विस्तृत विवेचना की गयी है । पर्युषणा का मूल अर्थ है— कषाय का उपशमन । पर्युषणाकाल में यदि मुनि को अधिकरण या कषाय का वेग आ जाए तो सांवत्सरिक उपशमन करना चाहिए। अधिकरण के प्रसंग में नियुक्तिकार ने दुरूतक, प्रद्योत एवं द्रमक के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। कषाय के अंतर्गत कोध आदि कषायों के चार-चार भेदों का उल्लेख किया है— क्रोध, मान, माया और लोभ के दोषों को बताने के लिए नियुक्तिकार ने मरुक, अत्वंकारीभट्टा, पांडुरा तथा आचार्य मंगु की कथाओं का निर्देश किया है। अंत में संयम - क्षेत्र की विशेषता तथा वर्षा में भिक्षा की आपवादिक विधि का उल्लेख किया गया है । नौवीं दशा की नियुक्ति में मोह के निक्षेप तथा कर्म शब्द के एकार्थकों का उल्लेख है । नियुक्तिकार ने महामोहनीय कर्मबंध के कारणों का वर्जन करने की प्रेरणा दी है क्योंकि इनसे अशुभ कर्म का बंध होता है, जो दुःख का कारण बनते हैं 1 दसवीं निदानस्थान दशा का दूसरा नाम आजातिस्थान भी है। इसमें जाति, आजाति और प्रत्याजाति की परिभाषाओं के साथ मोक्षगमन के योग्य साधु की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है । नियुक्तिकार ने निक्षेप के माध्यम से बंध का विस्तृत वर्णन किया है तथा अंत में संसार - समुद्र से तरने के पांच उपाय बताए हैं। कहा जा सकता है कि यह नियुक्ति आचार विषयक अनेक विषयों का स्पष्टीकरण करने वाली है । निर्युक्तियों की गाथा-संख्या : एक अनुचिंतन प्रस्तुत ग्रंथ में संपादित पांचों निर्युक्तियों की उपलब्धि के तीन स्रोत प्राप्त होते हैं - १. नियुक्ति की हस्तलिखित प्रतियां । २. चूर्णि में प्रकाशित नियुक्ति - गाथाएं ३. टीका में प्रकाशित निर्युक्ति-गाथाएं ।' दशवैकालिक और उत्तराध्ययननियुक्ति की जितनी भी हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त हुईं, उनमें भाष्य और नियुक्ति की गाथाएं भी साथ में लिखी हुई थीं अतः उनके आधार पर गाथाओं का सही निर्णय करना संभव नहीं था। चूर्णि और टीका की गाथा - संख्या में भी पर्याप्त अंतर है । दशवैकालिक की प्रकाशित १. दशाश्रुतस्कंध की टीका अभी प्रकाशित नहीं हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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