SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९८ ८२।१. ८३. ८४. ८५. ८६. ८७. ८५. ८९. ९०. निर्युक्तिपंचक गरहा पसत्थविगतिग्गहणं, तत्थ विय असंचइय उ जा उत्ता । संचय ण गेहंती, गिलाणमादीण कज्जट्ठा' ॥ पसत्थविगतिग्गहणं, गरहितविगतिग्गहो य कज्जम्मि | लाभपमाणे, पच्चयपावप्पडीघातो ॥ कारणओ उडुगहिते, उज्झिऊण गेव्हंति अण्णपरि साडी' । दाडं गुरुस्स तिणि उ, सेसा गेव्हंति एक्क्कं ॥ उच्चार पासवण खेलमत्तए, तिष्णि तिणि गेहति। आएट्ठा 'भुंजेज्जऽवसेस उभंति ॥ घुवलोओ उ जिणाणं, निच्चं थेराण वासवासासु" । असहू गिलाणगस्स व, 'नातिक्का मेज्ज तं रर्याणि ॥ मोत्तुं पुराण - भावितसड्ढे, संविग्ग सेसपडिसेहो" । ' मा होहिति निद्धम्मो', " भोयणमो य उड्डाहो ॥ दारं ॥ संजय डगलच्छारे लेवे, छड्डण गहणे तव धरणे य । पुंछण-गिलाण मत्तग, भायणभंगादिहेतु से १२ ॥ इरिएसण-भासाणं, मण - वयसा - काइए ३ अहिकरण-कसायाणं, संवच्छरिए कामं तु सव्वकालं, पंचसु समितीसु होति 'वासासु अहीगारो', ' बहुपाणा मेदिणी जेणं ५ ।। जतियव्वं । १४ १. ८२०१ की गाथा निभा ३१६९ में ही मिलती है । आयारदशा की हस्तप्रतियों में यह गाथा अप्राप्त है। चूर्णि में भी इस गाथा की व्याख्या नहीं मिलती है । इस गाथा के सम्बन्ध में दो बातें संभव है । प्रथम तो स्वयं निशीथ भाष्यकर ने स्पष्टता के लिए यह गाथा लिख दी हो। दूसरा यह भी संभव है कि आयारदशा नियुक्ति के लिपिकारों द्वारा यह गाथा छूट गई हो । पुष्ट प्रमाण के अभाव में इसे निर्युक्ति गाथा के क्रम में नहीं रखा है । २. विगतीए गहणम्मि वि ( निभा ३१७०) । ३. व ( निभा, ब ) । ४. कारणे ( निभा ३१७१) । ५. ० साडि ( निभा ), ०परिपाडी (बी) । Jain Education International ६. संजम (ला, निभा ३१७२ ) । ७. य ( अ, निभा ३१७३) । यदुच्चरिते । विओसवणं ॥ 5. ९. ०वासा उ (बी) । तं रर्याणि तु णऽतिक्कामे ( निभा ) । नातिकमेज्जा तं० (बी) । १०. सच्चित्त से० ( ला निभा ३१७४) । ११. मानिओ भविस्सइ (मु.अ ) । १२. प्रस्तुत गाथा आयारदशा की चूर्णि की मुद्रित पुस्तक में तथा कुछ आदर्शों में नहीं मिलती है । किन्तु चूर्णि में इसकी व्याख्या मिलती है । इसके अतिरिक्त निशीथ भाष्य (३१७५) में भी इस क्रम में यह गाथा उपलब्ध है । हमने इसे नियुक्ति गाथा के क्रम में सम्मिलित किया है । १३. कायए ( निभा ३१७६) । १४. वासावासं अहिगारो ( ब ) । १५. निभा ३१७७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy