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________________ ३६६ निर्युक्तिपंचक ६०. धर्म में जो दृढमति वाला होता है, वही शूर है, सात्त्विक है और वीर है । धर्म के प्रति निरुत्साही व्यक्ति अत्यधिक शक्तिशाली होने पर भी शूर नहीं होता । ६१. स्त्री-संसर्ग से होने वाले जो दोष पुरुषों के से स्त्रियों के लिए कथित हैं। इसलिए विरागमार्ग में प्रवृत्त है । पांचवां अध्ययन : नरक-विभक्ति द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । ६२, ६३ नरक शब्द के छह निक्षेप हैं--नाम, स्थापना, द्रव्यनरक -- जो इसी जन्म में पापकारी प्रवृत्तियों में संलग्न हैं, वे / अथवा नरक सदृश यातना के स्थान । क्षेत्रनरक -काल, महाकाल आदि नरकावास | कालनरक - नारकों की काल स्थिति । भावनरक-- जो जीव नरकायुष्क का अनुभव करते हैं अथवा नरक प्रायोग्य कर्मोदय । नरक के दुःखों को सुनकर तपश्चरण- संयमानुष्ठान में प्रयत्नशील रहना चाहिए । ६४. विभक्ति शब्द के छह निक्षेप हैं--नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । लिए कहे गए हैं, वे ही दोष पुरुष-संसर्ग स्त्रियों के लिए अप्रमाद ही श्रेयस्कर ६५. नारकीय प्राणी नरकावासों में तीव्र वेदना को उत्पन्न करने वाले पृथ्वी के स्पर्श का अनुभव करते हैं । वह वेदना दूसरों के द्वारा अचिकित्स्य होती है । पहले तीन नरकवासों में अत्राण नैरयिक परमाधार्मिक देवों द्वारा कृत वध - हनन का अनुभव करते हैं। शेष चार नरकावासों में नैरयिक क्षेत्र - विपाकी और परस्पर उदीरित वेदना का अनुभव करते हैं । ६६,६७. पन्द्रह परमाधार्मिक' देवों के नाम इस प्रकार हैं--- (१) अंब (६) उपरौद्र (२) अम्बरिसी (७) काल (८) महाकाल (९) असि (१०) असिपत्रधनु (३) श्याम (४) शबल (५) रौद्र ६८. अंब परमधार्मिक देव नैरयिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर दौड़ाते हैं, इधरउधर घुमाते हैं, उनका हनन करते हैं, शूलों में पिरोते हैं, गला पकड़कर भूमि पर ओंधे मुंह पटकते हैं, आकाश में उछालकर नीचे गिराते हैं । ६९. मुद्गरों से आहत, खड्ग आदि से उपहत तथा मूच्छित नारकियों को अंबरिषी परमाधार्मिक देव करवत से चीरकर या टुकड़े-टुकड़े कर छिन्न-भिन्न करते हैं । १. भवनपति देवों में अत्यंत अधम देवों को परमधार्मिक देव कहा जाता है-भवनपत्य Jain Education International (११) कुम्भी (१२) वालुका (१३) वैतरणी (१४) खरस्वर (१५) महाघोष | ७०. श्याम परमाधार्मिक देव तीव्र असातावेदनीय कर्म का अनुभव करने वाले नारकियों के अंगोपांग का छेदन करते हैं, पहाड़ से नीचे वज्रभूमि में गिराते हैं, शूल में पिरोकर व्यथित सुराधमविशेषाः परमधार्मिकाः । For Private & Personal Use Only ( सूटी. पृ. ८३ ) www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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