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आचारांग नियुक्ति
२९३ ७९. बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीवों के जितने भेद हैं, उतने ही भेद अपर्याप्तक जीवों के हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव भी दो प्रकार के होते हैं पर्याप्तक और अपर्याप्तक ।
८०. जैसे वनस्पति में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, वलय आदि भेद पाए जाते हैं, वैसे ही पृथ्वी आदि में भी नानात्व है।
८१. जैसे वनस्पतिकाय में औषधि, तृण, शैवाल, पनक, कन्द, मूल आदि नानात्व दीखता है, वैसे ही पृथ्वीकाय में भी नानात्व है ।
८२. पृथ्वीकाय के एक, दो, तीन अथवा संख्येय जीव दृग्गोचर नहीं होते। पृथ्वी का असंख्य जीवात्मक पिंड ही दश्य होता है।
८३. इन असंख्येय शरीरों के कारण ही वे प्रत्यक्षरूप से प्ररूपित होते हैं। जो आंखों से दिखाई नहीं देते वे आज्ञाग्राह्य-श्रद्धा से मान्य होते हैं।
८४. पृथ्वीकायिक आदि जीवों के उपयोग, योग, अध्यवसाय, मतिज्ञान, श्रतज्ञान तथा अचक्षदर्शन होता है। वे आठ कर्मों के उदय और बंधन से युक्त, लेश्या, संज्ञा, सूक्ष्म श्वास और निःश्वास से अनुगत तथा कषाययुक्त होते हैं ।
८५. जैसे शरीरानुगत हड्डी सचेतन तथा खर- कठिन होती है, वैसे ही जीवानुगत पृथ्वीशरीर भी सचेतन तथा कठिन होता है ।
८६. पृथ्वीकायिक जीव चार प्रकार के हैं
(० बादरपृथ्वीकायिक के दो भेद-अपर्याप्त, पर्याप्त ।
० सूक्ष्मपृथ्वीकायिक के दो भेद अपर्याप्त, पर्याप्त ।)
इनमें बादर पर्याप्त पृथ्वीकायिक जीव लोक प्रतर के असंख्येय भाग मात्रवर्ती प्रदेशराशि प्रमाण वाले हैं। शेष तीन प्रकारों में प्रत्येक प्रकार असंख्येय लोक के आकाशप्रदेशराशि प्रमाण वाले
८७. जैसे कोई व्यक्ति प्रस्थ, कुडव, आदि साधनों से सारे धान्यों का परिमाण करता है वैसे ही लोक को कुडव बनाकर पृथ्वीकायिक जीवों का परिमाण करे तो वे जीव असंख्येय लोकों को भर सकते हैं।
__८८. लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर यदि एक-एक पृथ्वीकायिक जीव को रखा जाए तो वे सारे जीव असंख्येय लोकों में समायेंगे।
___८९. काल निपुण --- सूक्ष्म होता है। क्षेत्र उससे भी निपुणतर-- सूक्ष्मतर होता है क्योंकि अंगुलि-श्रेणिमात्र क्षेत्र प्रदेशों के अपहार में असंख्येय उत्सपिणियां तथा अवसर्पिणियां बीत जाती हैं।' (इसलिए काल से क्षेत्र सक्ष्मतर होता है)।
९०. पृथ्वीकाय में जीव प्रतिसमय प्रवेश करते हैं और प्रतिसमय उससे निर्गमन करते हैं। (प्रस्तुत श्लोक में चार प्रश्न हैं)। १. अंगुल प्रमाण आकाश में जितने आकाश प्रदेश उस क्षेत्र को खाली होने में असंख्यात हैं, उनमें से यदि एक-एक समय में एक-एक उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी काल बीत जाएगा। आकाश प्रदेश का अपहरण किया जाये तो अत: काल से क्षेत्र सूक्ष्मतर है।
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