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नियुक्ति पंचक
नियुक्ति के अनुसार उत्तराध्ययन के अध्ययनों की संक्षिप्त विषय-वस्तु इस प्रकार है—
१३. निदान — भोग-संकल्प
२५. ब्राह्मण के गुण २६. सामाचारी
१. विनय
२. परीषह
३. चार दुर्लभ अंग
४. प्रमाद - अप्रमाद
५. मरण- विभक्ति
६. विद्या और आचरण ७. रसगृद्धि का परित्याग
८. अलाभ
९. संयम में निष्कंपता
१०. अनुशासन की उपमा
११. बहुश्रुत - पूजा
१२. तप: ऋद्धि
१४. अनिदान — भोग- असंकल्प १५. भिक्षु के गुण
१६. ब्रह्मचर्य की गुप्तियां १७. पाप - वर्जन
१८. भोग और ऋद्धि का परित्याग ३०. तप
१९. अपरिकर्म
३१. चारित्र
३२. प्रमादस्थान
३३. कर्म
३४. लेश्या
३५. भिक्षुगुण
३६. जीव- अजीव विवेचन ।
२०. अनाथता
२१. विचित्रचर्या
२२. चरण की स्थिरता २३. धर्म
२४. समितियां
उत्तराध्ययननिर्युक्ति
उत्तराध्ययन निर्युक्ति में ५५४ गाथाएं हैं । इस नियुक्ति की रचना - शैली अन्य नियुक्तियों से भिन्न है । इसके प्राय: सभी अध्ययनों में निक्षेपपरक तथा अध्ययन के नाम से संबंधित गाथाएं एक समान हैं । निक्षेप के आधार पर नियुक्तिकार ने संयोग शब्द के विभिन्न प्रकार एवं उनकी विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। जैसे अणुओं का स्कंधों से संयोग, पंचास्तिकाय के प्रदेशों का संयोग, इन्द्रिय-मन और पदार्थों का संयोग, वर्णों का शब्दों के साथ संयोग तथा आत्मा के साथ विविध भावों का संयोग आदि । यद्यपि इस विस्तृत व्याख्या से उत्तराध्ययन की गाथा समझने में कोई सहायता नहीं मिलती लेकिन इस व्याख्या से पुद्गल और जीव से संबंधित संसार के जितने भी संयोग हैं, उन सबका वैज्ञानिक एवं सैद्धान्तिक ज्ञान हो जाता है ।
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२७. अशठता
२८. मोक्षगति
२९. आवश्यक में अप्रमाद
प्रथम अध्ययन में अविनीत को गलि—दुष्ट घोड़े की तथा विनीत को आकीर्ण – जातिमान् अश्व की उपमा दी है अतः गलि और आकीर्ण के एकार्थक भी कोशविज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इस नियुक्ति में उत्तर, करण, अंग, निर्ग्रथ आदि शब्दों के निक्षेप अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं । दूसरे परीषह अध्ययन की निर्युक्ति में १३ द्वारों में परीषह का सैद्धान्तिक एवं तात्त्विक वर्णन मिलता है । अकाममरणीय अध्ययन में मरण के भेदों का सर्वांगीण विवेचन प्राप्त होता है। आगे के अध्ययनों में मुख्यतः निक्षेपपरक गाथाएं अधिक हैं ।
कथा की दृष्टि से यह नियुक्ति अत्यन्त समृद्ध है । प्रसंगवश लगभग ६० से ऊपर कथाओं का उल्लेख निर्युक्तिकार ने किया है। केवल परीषह प्रविभक्ति अध्ययन में २५ कथाओं का संकेत है । चार प्रत्येकबुद्ध कथाओं की तुलना वैदिक एवं बौद्ध साहित्य से की जा सकती है । अन्य नियुक्तियों की भांति इसमें कथाएं संक्षिप्त नहीं, अपितु विस्तार से दी गयी हैं । रचना - शैली की दृष्टि से यह अन्य नियुक्तियों से भिन्न है।
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