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उत्तराध्ययन नियुक्ति पैतीसवां अध्ययन : अनगार-मार्ग-गति
५४१-४३. अनगार शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद हैं आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन भेद हैं-ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त अनगार में निहव आदि का ग्रहण होता है। भाव अनगार वह होता है, जो सम्यकदष्टि और अगारवास से मुक्त होता है। मार्ग और गति शब्द के भी चार-चार निक्षेप हैं, जो पूर्व निर्दिष्ट हैं । प्रस्तुत में भावमार्ग और सिद्धगति का प्रसंग है। छत्तीसवां अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति
५४४,५४५. जीव शब्द के चार निक्षेप हैं--नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। द्रव्य जीव के दो भेद हैं -- आगमतः, नो-आगमत: । नो-आगमत: के तीन भेद हैं--ज्ञशरीर, भव्यशरीर और तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त जीवद्रव्य है । जीवद्रव्य के दस प्रकार के परिणाम भावजीव हैं।
५४६.५४७. अजीब शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद हैं--आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमत: के तीन भेद हैं-ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तव्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त अजीवद्रव्य है । अजीव के दस प्रकार के परिणाम भाव-अजीव हैं।
५४८-५०. विभक्ति शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद हैं-आगमत:, नो-आगमतः। नो-आगमत: के तीन भेद हैं-ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त के दो भेद हैं- जीव विभक्ति और अजीव विभक्ति । जीव विभक्ति के दो भेद हैं --सिद्ध विभक्ति, असिद्ध विभक्ति । अजीव द्रव्य विभक्ति के भी दो भेद हैं-रूपी द्रव्य विभक्ति, अरूपी द्रव्य विभक्ति ।
५५१. भाव विभक्ति में छह प्रकार के भाव ज्ञातव्य हैं। प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्य विभक्ति का अधिकार है।
५५२,५५३. जो जीव भवसिद्धि क हैं, परीत संसारी हैं और भव्य हैं, वे धीर मुनि इन छत्तीस उत्तर अध्ययनों का अध्ययन करते हैं। जो मुनि अभवसिद्धिक हैं, ग्रंथियों में आसक्त हैं, अनन्त संसारी हैं, वे संक्लिष्टकर्मा व्यक्ति उत्तराध्ययनों के अध्ययन के लिए अयोग्य हैं।
५५४. इसलिए जिनेश्वर द्वारा प्रज्ञप्त अनन्त अर्थों और पर्यवों से युक्त इन उत्तराध्ययनों का गुरुकृपा से यथायोग-विधियुक्त अध्ययन करना चाहिए।
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