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________________ उत्तराध्ययननियुक्ति २०५ - १९६. नोश्रुतकरण दो प्रकार का है— गुणकरण और योजनाकरण | तपःकरण और संयमकरण ये गुणकरण हैं। मन, वचन, काया की प्रवृत्ति को आत्मा के साथ योजित करना योजनाकरण है। सत्यमनोयोग आदि चार प्रकार का मनोयोग, सत्यवचन आदि चार प्रकार का वचनयोग, औदारिक काययोग आदि सात प्रकार का काययोग - ये पन्द्रह योजनाकरण हैं । १९७. कार्मणशरीरकरण के अनेक भेद हैं। उसमें आयुष्यकरण असंस्कृत है- वह उत्तरकरण के द्वारा भी साधा नहीं जा सकता । प्रस्तुत अध्ययन में उसी का प्रसंग है । अतः अप्रमाद को ही चरित्र का विषय बनाना चाहिए। १९८. द्वीप के दो प्रकार है- द्रव्यद्वीप और भावद्वीप दोनों के दो-दो भेद हैं- आश्वासद्वीप और प्रकाशद्वीप | १९९. आश्वासद्वीप के दो भेद हैं- संदीनद्वीप' और असंदीनद्वीप । प्रकाशद्वीप के दो भेद हैं - संयोगिम' तथा असंयोगिम । यह द्रव्यद्वीप की अपेक्षा से है । भावद्वीप की अपेक्षा से आश्वासद्वीप और प्रकाशद्वीप प्रत्येक के दो-दो प्रकार हैं । पांचवां अध्ययन : अकाममरणीय २००. काम शब्द के चार निक्षेप हैं तथा मरण शब्द के छह निक्षेप हैं। काम की व्याख्या पहले (दशवेकालिक के दूसरे अध्ययन में) की जा चुकी है। प्रस्तुत में अभिप्रेतकाम इच्छाकाम का प्रसंग है । २०१. मरण के ये छह निक्षेप हैं - ( १ ) नाममरण (२) स्थापनामरण ( ३ ) द्रव्यमरण (४) क्षेत्रमरण (५) कालमरण (६) भावमरण | २०२. द्रव्य का मरण द्रव्यमरण है । जैसे - कुसुम्भ आदि का मरण अर्थात् कुसुम्भ का रंगने के सामर्थ्य का अभाव, उसका मरण है। भावमरण है आयुष्य का क्षय उसके तीन प्रकार है- ( १ ) ओषमरण - सर्व प्राणियों का होने वाला मरण, (३) भवमरण-उस-उस भव में होने वाला मरण, (३) तद्भवमरण - उस भव में मरकर पुन: उसी भव में उत्पन्न होना । प्रस्तुत प्रसंग में मनुष्य भविक मरण का अधिकार है । २०३-२०४. जब हम मरण के विभागों की प्ररूपणा, आयुष्यकर्म का अनुभाव, आयुष्यकर्म के प्रदेशाग्र, मरणों के कितने प्रकार से प्राणी मरता है ? प्राणी एक समय में कितनी बार मरता है ? एक-एक मरण में कितनी बार मरता है ? वक्ष्यमाण मरण-भेदों में एक-एक में कितने भागों में मरण होता है ? संसार के सभी जीवों के ये मरण निरन्तर होते हैं या व्यवहित ( सान्तर) होते हैं ? एक-एक मरण का कालमान कितना है? आदि का वर्णन करेंगे । १. द्वीप- जो जल प्रवाह में नष्ट हो जाता है, ३. संयोगिम तेल, बर्ती, अग्नि के संयोग से वह संदीप द्वीप है। प्रकाश करने वाला । २. - असंदीन द्वीप - वह द्वीप, जो जल प्रवाह में ४. असंयोगिम — सूर्य का बिम्ब आदि । नष्ट नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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