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पहला अध्ययन : विनयश्रुत
१. उत्तर शब्द के १५ निक्षेप हैं१. नाम उत्तर ६. तापक्षेत्र उत्तर
११. प्रधान उत्तर २. स्थापना उत्तर ७. प्रज्ञापक उत्तर
१२. ज्ञान उत्तर ३. द्रव्य उत्तर ८. प्रति उत्तर
१३. क्रम उत्तर ४. क्षेत्र उत्तर ९. काल उत्तर
१४. गणना उत्तर ५. दिशा उत्तर १०. संचय उत्तर
१५. भाव उत्तर। २. प्रत्येक जघन्य वस्तु 'सोत्तर'-उत्तर सहित होती है और उत्कृष्ट वस्तु 'अनुत्तर'उत्तर रहित होती है । शेष मध्यम वस्तु 'सोत्तर-अनुत्तर' दोनों होती हैं ।
३. प्रस्तुत प्रसंग में क्रम-उत्तर का प्रसंग है। ये उत्तर-अध्ययन (उत्तराध्ययन) आचारांग सूत्र के उत्तरकाल-पश्चात् पढ़े जाते थे इसलिए ये अध्ययन 'उत्तर' शब्द से वाच्य हए हैं।
४. ये अध्ययन दष्टिवाद आदि अंगों से उत्पन्न हैं, जिनभाषित हैं, प्रत्येकबुद्ध मुनियों तथा परस्पर संवादों से समुत्थित हैं । इनमें बन्धन और बन्धन-मुक्ति का विवेक है। ये सारे छत्तीस उत्तराध्ययन हैं।
५. अध्ययन शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम अध्ययन, स्थापना अध्ययन, द्रव्य अध्ययन तथा भाव अध्ययन । इसी प्रकार अक्षीण, आय और क्षपणा के भी ये चार-चार निक्षेप होते हैं।
६. अध्यात्म का आनयन अर्थात् आत्मा का अध्ययन । उपचित कर्मों का अपचय तथा नए कर्मों का अनुपचय-यह अध्ययन का प्रयोजन है ।
७. जिससे जीव आदि पदार्थों का ज्ञान होता है, ज्ञान आदि की अधिक प्राप्ति होती है, मुक्ति की शीघ्र साधना की जाती है, वह अध्ययन है।
८. जैसे एक दीपक से सौ दीपक जलाए जाते हैं और वह दीपक भी जलता रहता है, वैसे ही आचार्य दीपक के समान होते हैं जो स्वयं को और दूसरों को प्रकाशित करते हैं ।
९. भाव अध्ययन प्रशस्त और द्रव्य अध्ययन अप्रशस्त होता है। जिससे ज्ञान आदि की प्राप्ति होती है, वह प्रशस्त और जिससे क्रोध आदि की जागृति हो, वह अप्रशस्त है। आय, आगम, लाभ-ये एकार्थक हैं।
१०. वस्त्र की पर्यस्तिका, उत्पिढ़ना और उत्पीड़ना-ये द्रव्य क्षपणा हैं। ये तीनों ही क्रमशः अपथ्य, अपथ्यतर तथा अपथ्यतम हैं।
११. शुभ योगों के द्वारा जो बंधे हुए चिरन्तन आठ कर्मरजों को विनष्ट करता है, यह परम्परा से भावक्षपण है। इस भाव अध्ययन को आगे से आगे जानना चाहिए।
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