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________________ ४२०. नियुक्तिपंचक पण्णवण वेद रागे, कप्प चरित्त पडिसेवणा नाणे । 'तित्थे लिंग सरीरे", खेत्ते काल 'गति (ठिति) संजम निगासे ।। जोगुवओग-कसाए, लेसा-परिणाम 'बंधणे उदए'५ । कम्मोदीरण उवसंपजहण सण्णा य आहारे ।। भव-आगरिसे कालंतरे समुग्घाय' खेत्त फुसणा य। भावे परिणामे खलु, ‘महानियंठाण अप्पबहू'८॥ सावज्जगंथमुक्का, अभितरबाहिरेण गंथेण। एसा खलु निज्जुत्ती, महानियंठस्स सुत्तस्स ।। महानियंठस्स निज्जुत्ती सम्मत्ता ४२१. ४२२. ४२३. ४२४. "समुद्देण पालियम्मि'६, निक्खेवो चउक्कओ दुविह" दव्वे । आगम-नोआगमतो, नोआगमतो य सो तिविहो । समुद्दपालिआउं" य, वेदेतो भावतो य नायव्वो । तत्तो समुट्ठियमिणं, समुद्दपालिज्जमज्झयणं ।। चंपाएँ सत्थवाहो, नामेणं आसि पालिगो'२ नाम । वीरवरस्स भगवतो, सो'३ सीसो खीणमोहस्स" ।। ४२५. १. तित्थलिंग सरीर (शां)। ७. समघाय (अ)। २. खित्ते (शां,अ)। ८. महानिग्गंथांण अप्पबहुं (शां), अप्पाबहुयं ३. गइ ठिति (शां), ठिति शब्द न रहने से छंद नियंठाणं (भ २०२७८।३)। भंग नहीं होता। ९. पालियम्मी (ला), समुद्दे पालियम्मि य ४. भ २५४२७८।१, ४१९-२१ तक की (अ), पालिअंमि अ (शां)। गाथाओं के लिए चूर्णिकार ने 'पण्णवण वेय १०. दुविहो (ला), दुविहो (अ)। रागे इत्यादि गाथात्रयसंग्रहीतानि' ऐसा ११. समुद्देण ० (अ), ०पालिआऊ (शां)। उल्लेख किया है। संभव है ये गाथाएं १२. पालगो (ला)। भगवती सूत्र (२५।२७८।गा. १-३) मे १३. ४ (ला)। निर्यक्तिकार ने उदधत की हों। ये तीनों १४. ४२५-४३६ तक की गाथाओं में समद्रगाथाएं नियुक्ति का अंग बन गई हैं क्योंकि पाल की कथा है। चर्णिकार ने इन गाथाओं ४१८ की गाथा में नियुक्तिकार में स्पष्ट का संकेत और व्याख्या न करके मात्र इतना उल्लेख किया है कि 'इमेहिं दारेहिं सो उल्लेख किया है कि 'सूत्रोक्तमेवार्थ यत्पुनः नेओ।' नियुक्तिकारो ब्रवीति' तथा टीकाकार ने भी ५. बंध वेदे य (भ २५।२७८२)। इन गाथाओं के लिए...'वदन्नाह नियुक्ति६. उवसंपज्जण (ला), उवसंपजहण्ण (भ)। कारः' का उल्लेख किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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