SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नियुक्तिपंचक एगुणतोसे' आवस्सगप्पमादो तवो य होइ तीसइमे । चरणं च एक्कतीसे, बत्तीसे पमायठाणाई ।। तेत्तीसइमे कम्म, चउतीसइमे य होंति लेसाओ। भिक्खुगुणा पणतीसे, जीवाजीवा य छत्तीसे ।। २७. 'उत्तरज्झयणाणेसो, पिंडत्थो वण्णितो समासेणं ॥ एत्तो एक्केक्कं पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि ।। २८. तत्थऽज्झयणं पढम, विणयसुतं तस्सुवक्कमादीणि । दाराणि परूवे, अधिगारो एत्थ विणएणं' ।। २८।१. ओहो जं सामन्नं, सुताभिहाणं चउव्विहं तं च । अज्झयणं अज्झीणं, आयो झवणा य पत्तेयं" ।। २८१२. नामादिचउन्भेयं, वण्णेऊणं सुयाणुसारेणं । विणयसुयं आउज्ज, चउसु पि कमेण भावेसुं ।। २८॥३. जेण सुहप्पज्झयणं, अज्झप्पाणयणमहियणयणं वा। बोधस्स संजमस्स य, मोक्खस्स व तो तमज्झयणं । २८१४. अक्खीणं दिज्जतं, अव्वोच्छित्तिणयतो अलोगो व। आओ नाणादीणं, झवणा पावाण कम्माणं ।। २९. विणयो२ पुन्वदिवो, सुतस्स चउक्कओ उ निक्खेवो । दव्वसुयनिण्हगादी, भावसुय सुए उ उवउत्तो ।। ३०. संजोगे निक्खेवो, छक्को दुविहो उ दव्वसंजोगे। संजुत्तगसंजोगो, नायवियरेयरो चेव ।। १. एगुणत्तीसइमे (ला,ह)। ये नियुक्ति गाथा के क्रम में न होकर उद्धृत २. गम्पमदो (ह), पमातो (ला)। गाथा के रूप में स्वीकृत हैं। मूलतः ये गाथाएं ३. X (ह)। विशेषावश्यक भाष्य की हैं। संभव है लिपि४. ठाणाई (ला)। कर्ताओं ने इनको भी नियुक्ति गाथाओं के ५. चोत्तीसतिमे (ला,ह)। साथ जोड़ दिया है। उनि १५ में अध्ययन के ६. पणु० (ह)। एकार्थक दिए हैं, वही बात २८।१ की गाथा ७. उत्तरज्झयणाण पिंडत्थे (चू)। में है। नियुक्तिकार ऐसी पुनरुक्ति नहीं करते। ८. पन्नवेउं (शां)। इसके अतिरिक्त विषय की दृष्टि से भी २८वीं ९. तत्थ (ला,ह)। गाथा के बाद २९वीं गाथा क्रमबद्ध लगती है। १०, चणि में यह गाथा रूप में संकेतित नहीं है, १२.विनय का वर्णन देखें दशनि २८६-३०१ तक। केवल भावार्थ प्राप्त है। शांत्याचार्य की टीका में ये गाथाएं उधत ११.२८।१-४ तक की चार गाथाएं 'ला' और 'ह' गाथा के रूप में हैं। (देखें शांटी प १६,१७)। आदर्शों में उपलब्ध हैं। टीका और चूर्णि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy