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________________ ११२ तेतीसवां अध्ययन ५२२-५२४. कर्म शब्द के निक्षेप और उसके भेद-प्रभेदों का उल्लेख । ५२५-५२७. प्रकृति शब्द के निक्षेप तथा उसके भेद-प्रभेदों का उल्लेख | कर्म प्रकृतियों के संवरण तथा निर्जरा का उपदेश | ५२८. चौतीसवां अध्ययन ५२९,५३०. लेश्या शब्द के निक्षेप तथा उसके भेद-प्रभेदों का उल्लेख । ५३१. जीवलेश्या के भेद । ५३२, ५३३. अजीवद्रव्यलेश्या के दस प्रकार तथा उनके नामोल्लेख । द्रव्यकर्मलेश्या के कृष्ण, नील आदि छह प्रकार । ५३५,५३६. भावलेश्या के प्रकार और उनका स्वरूप । नोकर्मा के भेद । अध्ययन शब्द के निक्षेप तथा भेद-प्रभेद । ५३४. ५३७. ५३८. ५३९. ५४०. भाव अध्ययन का स्वरूप । अप्रशस्त लेश्या को छोड़कर प्रशस्त लेश्या में यत्न करने का निर्देश | Jain Education International पंतीसवां अध्ययन J ५४१.५४२. अनगार शब्द के निक्षेप उसके भेद-प्रभेदों का उल्लेख तथा भाव अनगार का स्वरूप | मार्ग और गति के निर्देश निशेष के पूर्वोल्लेख का ५४३. छत्तीसवां अध्ययन ५४४,५४५. जीव शब्द के निक्षेप, उसके भेद-प्रभेद तथा भाव जीव के दस परिणामों का उल्लेख उत्तराध्ययन निर्युक्ति ५४६,५४७. अजीव शब्द के निक्षेप, उसके भेद-प्रभेद तथा भाव अजीव के दस परिणामों का उल्लेख ५४८, ५४९. विभक्ति शब्द के निक्षेप तथा उसके भेदप्रभेद । सिद्ध आदि की विभक्ति का निरूपण । भावविभक्ति का उल्लेख तथा प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्यविभक्ति के अधिकार का उल्लेख ५५२५५३. उत्तराध्ययन को पढ़ने के अधिकारी और अनधिकारी कौन ? ५५०. ५५१. ५५४. गुरु प्रसाद से इसका सांगोपांग अध्ययन संभव । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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