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दशकालिक नियुक्ति
२१७११. पिंडो एसणा या, दुपयं नामं तु तस्स नायव्वं । चउचउनिक्खेवेहि, परूवणा तस्स कायव्वा' ।। २१८. नामं ठवणापिंडो, 'दव्वे भावे य होति णातव्वो । गुड' - ओदाइ' दव्वे, भावे कोहादिया चउरो ।।
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२१८ ।१. पिडि संघाए जम्हा, ते संघाययति जीवं, २१८।२. दव्वेसणा उ तिविहा, दुपय- चउप्पय अपया,
२१८ । ३. भावेसणा उ दुविहा, नाणाई पसत्था,
एत्थं
२१८।४. भावस्सुवगारित्ता, तीइ पुण अत्थजुत्ती,
उइया संहया य संसारे ।
कम्मेणटुप्पगारेण ।। दारं ।। सच्चित्ताचित्त- मी सदव्वाणं । नर-गय-करिसावण- दुमाणं ।। पसत्थ - अपसत्थगा य नायव्वा । अपसत्था को हमादी ||
१. दोनों चूर्णियों में इस गाथा का कोई उल्लेख नहीं है । टीका में यह नियुक्ति गाथा के क्रमांक में है । इस गाथा से पूर्व टीका में भाष्य गाथा है । यह गाथा विषयवस्तु की दृष्टि से भाष्यगाथा के साथ जुड़ती है । यह निर्युक्ति की प्रतीत नहीं होती । क्योंकि नियुक्तिकार प्रायः 'णामं ठवणा' वाली गाथा से ही अध्ययन का प्रारंभ करते हैं ।
२. दव्वपिंडो य भावपिंडो य (जिचू, अ, ब ) | ३. गुल ( अ, ब, अचू, रा) ।
४. ओयणाय ( अ, ब ) ।
५. पिंडनियुक्ति में कुछ अंतर के साथ निम्न गाथा मिलती है
नाम ठेवणाfपंडो,
एसो खलु पिंडस्स उ,
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दव्वे खेतेय काल भावे य ।
दव्वेसणाइ अहिगारो । वत्तव्वा पिंडनिज्जुत्ती ॥
freat aforहो होइ ॥ (पिनि ५)
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६. २१८१-४ तक की गाथाओं का दोनों चूर्णियों में कोई उल्लेख नहीं है । गा. २१८ के बाद दोनों चूर्णिकारों ने मात्र इतना संकेत किया है कि- 'नाम निष्फण्णे पिंडनिज्जुत्ती भाणियव्वा' (जिचू पृ. १६५) 'नाम निष्कण्णे fisनिज्जत्ती सव्वा' (अचू पृ. ९८ ) ये चार गाथाएं नियुक्ति की हैं या नहीं, यह विवादास्पद है । अन्य अनेक स्थलों पर टीकाकार 'आह निर्युक्तिकार : या आह भाष्यकार: ' उल्लेख करते हैं वैसा इन गाथाओं के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता । हमने इन्हें निगा के क्रम में नहीं रखा है । ये भाष्यगाथा ज्यादा संगत लगती हैं। फिर भी इनके बारे में गहन चिन्तन की आवश्यकता है ।
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