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________________ २८ ५. ६ ७. ८६. ८७. O ८८. उवसंहारो देवा, जह तह राया वि पणमति सुधम्मं । 'तम्हा धम्मो मंगलमुक्किट्ठे निगमणं एवं " ॥ बितिय इण्णा जिणसासणम्मि सार्हेति साहवो'धम्मं । हेऊ जम्हा सब्भाविएसुऽहिंसादिसु" जयंति || ८९ । १. जह जिणसास निरया, धम्मं पालेंति साहवो सुद्धं । न कुतित्थिए एवं दीसइ परिपालणोवाओ " ॥ ८९।२. तेसु विय धम्मसद्दो, धम्मं नियगं च ते पसंसंति । ओ सावज्जो, कुतित्थिधम्मो जिणवरेहिं ॥ ८९. धम्मो गुणा अहिंसादिया उ ते परममंगलपतिष्णा' । देवा वि लोगज्जा, पणमंति" सुधम्ममिति हेऊ ।। दिट्ठतो अरहंता', अणगारा य बहवे उ' जिणसिस्सा" । वत्तणुवत्ते णज्जति, जं नरवतिणो वि पणमंति || १. ०पइन्नो ( रा ) | २. पणमति (जिचू ) । ३. अरि ० ( अ ) । ४. ८९।३. जो तेसु धम्मसद्धो, सो उवयारेण निच्छएण इहं । जह सीहसद्दु सीहे, पाहवयारओन्नत्थ ।। (अचू, जिचू । सीसा (रा, हा, जिचू) । पणमंति (जिचू) | तम्हा मंगलमुक्किट्ठमिति निगमणं होति णायव्वं (जिचू), मंगल मुक्कट्ठमिइ अ निगमणं (हा ), ० मंगलमुक्कट्टमिइ निगमणं च ( अ, रा) । Jain Education International o ८. बीय (ब), बिइयपइन्ना (हा ) । ९. साहुणो ( अ, ब ) । १०. साभाविएसु अहिंसादिसु ( जिचू), साभावियं अहिंसादिसु (अ), अन्ये तु व्याचक्षते - भाविएहि० (हाटी) । ११. गा० ८९ के बाद ८९।१, २, ३ - इन तीन गाथाओं का दोनों चूर्णियों में कोई उल्लेख निर्युक्तिपंचक नहीं है । टीका में ये गाथाएं निर्युक्तिगाथा के क्रम में प्रकाशित हैं किन्तु पूर्वापर सम्बन्ध को देखते हुए ये गाथाएं भाष्य की प्रतीत होती हैं । ये तीनों गाथाएं ८९वीं गाथा की व्याख्या प्रस्तुत करती हैं । दूसरी बात यह है कि गा. ८९ के बाद ९० की गाथा का सीधा सम्बन्ध जुड़ता है। मुद्रित टीका में प्रथम भाष्यगाथा के रूप में 'एस पइण्णासुद्धि'.... गाथा है । इस गाथा में हेतुविशुद्धि का वर्णन है तथा प्रतिज्ञाशुद्धि की बात बताई जा चुकी है, इसका उल्लेख है। हाटी गा. ९३-९५ ( ८९ / १ - ३ ) इन तीन गाथाओं में प्रतिज्ञाशुद्धि का वर्णन है । भाष्यकार के उक्त कथन से ८९ / २-३ - इन तीनों गाथाओं को भाष्य गाथा मानने में कोई विप्रतिपत्ति नहीं होती । (देखें परिशिष्ट १ गा. १-३) । १२. तेसि ( ब ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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