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________________ नियुक्तिपंचक २१. भिक्खविसोधी तव-संजमस्स गुणकारिया तु पंचमए। छठे आयारकहा, महती जोग्गा' महयणस्स ।। २२. वयणविभत्ती पुण सत्तमम्मि पणिहाणमट्ठमे भणियं । नवमे विणओ दसमे, समाणियं एस भिक्खु त्ति ।। २३. दो अज्झयणा चूलिय, विसीययंते थिरीकरणमेगं । बितिए' विवित्तचरिया, असीयणगुणातिरेगफला ।। २४. 'दसकालियस्स एसो'५, पिंडत्थो वण्णितो समासेणं । एत्तो एक्केक्कं पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि ।। २५. पढमज्झयणं दुमपुफियं ति चत्तारि तस्स दाराई । वण्णित्तुवक्कमाई, धम्मपसंसाइ अहिगारो ।। २५।१. ओहो जं सामन्नं, सुताभिहाणं चउन्विहं तं च । अज्झयणं अज्झीणं, आयज्झवणा य पत्तेयं ।। २५१२. नामादि चउन्भेयं, वण्णेऊणं सुयाणुसारेणं । दुमपुफिय आओज्जा, चउराँ पि कमेण भावेसु ।। १. जोग्गो (अ, ब)। ७. वनिउ० (अ), वण्णेउ० (हा)। २. ० हाण अट्ठमे (अ)। ८. दोनों चणियों में प्रस्तुत गाथा उल्लिखित ३. बीए (ब)। नहीं है, लेकिन इसका भावार्थ दोनों चूणियों ४. विवत्त० (अ)। में मिलता है। कुछ पाठांतर के साथ ५. दसवेयालियस्स उ (जिन्), दसकालियस्सेह उत्तराध्ययन नियुक्ति में भी ऐसी गाथा (अचू)। मिलती है। देखें- उनि २८ । ६. वन्नइ० (जिच), प्रस्तुत गाथा दोनों चूणियों ९. उनि २८।१।। में उपलब्ध है। किन्तु मुनि पुण्यविजयजी ने १०. २५॥१,२ इन दोनों गाथाओं का चणियों में अगस्त्यसिंह चणि के संपादन में इसे नियुक्ति कोई उल्लेख नहीं है। केवल 'तत्थ उवक्कमो गाथा के क्रम में न रखकर उद्धत गाथा के जहा आवस्सए' इतना ही उल्लेख है। रूप में प्रस्तुत किया है। पंडित दलसुखभाई ये गाथाएं विशेषावश्यकभाष्य (गा. ९५८, मालवणिया के अनुसार यह गाथा उपसंहारा ९५९) की हैं। हस्तलिखित आदर्शों में ये त्मक और संपूर्ति रूप है। टीका तथा आदों गाथाएं मिलती हैं। किन्तु ये गाथाएं व्याख्या में यह गाथा मिलती है। हमने इस गाथा को के प्रसंग में बाद में जोड़ी गई प्रतीत होती हैं नियुक्तिगाथा के क्रम में रखा है क्योंकि अन्य अतः इन्हें निगा के क्रम में नहीं रखा है। नियुक्तियों में भी ऐसी उपसंहारात्मक गाथाएं टीकाकार हरिभद्र ने इनके लिए 'चाह मिलती हैं नियुक्तिकारः' ऐसा उल्लेख किया है। उत्तरज्झयणाणेसो, पिंडत्थो वण्णितो समासेणं । एत्तो एक्केक्कं पुण, अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥ (उनि २७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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