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________________ दशवकालिक नियुक्ति २९८. कायविनय के आठ भेदों का कथन । ३३०. अध्ययन में वर्णित गुणयुक्त भिक्षु ही भाव २९९. वाचिक और मानसिक विनय के भेदों का भिक्षु । उल्लेख । ३३१. केवल भिक्षा करने मात्र से भिक्षु नहीं। ३००,३०१. प्रतिरूप और अप्रतिरूप विनय तथा ३३२. उहिष्टभोजी तथा हिंसक व्यक्ति भिक्ष अनाशातनाविनय के बावन प्रकार । कैसे? ३०२. विनय करने योग्य तेरह पदों का निर्देश। ३३३. वास्तविक भिक्षु की पहचान । ३०३. विनय के बावन भेदों का संकेत। प्रथम चूलिका ३०४. द्रव्यसमाधि और भावसमाधि का स्वरूप । ३३४. चूलिका शब्द के निक्षेप। ३३५. द्रव्यचूला तथा क्षेत्रचूला का स्वरूप । दसवां अध्ययन ३३६. भावचूला का स्वरूप । ३०५. सकार शब्द के निक्षेप । ३३७. द्रव्यरति के भेदों का कथन । द्रव्य सकार का स्वरूप तथा अध्ययन के ३३८. द्रव्यरति और भावरति । अधिकारों का निर्देश । ३३९. कर्म के उदय से अरति और परीषह सहन ३०७. भिक्षु कौन ? से निर्वति-सुख की प्राप्ति ।। ३०७/१. 'सकार' का प्रशंसा के अर्थ में प्रयोग । ३४०. प्रथम चूलिका के नामकरण की सार्थकता । ३०८. भिक्ष शब्द के निक्षेप, निरुक्त आदि पांच ३४१. रति नाम की सार्थकता। द्वारों का उल्लेख। ३४२. धर्म में रति और अधर्म में अरति की गुणभिक्षु शब्द के निक्षेप। कारित।। ३१०. भेदक, भेदन और भेत्तव्य का निरूपण । ३४३. मोक्ष-प्राप्ति के उपाय। ३११-३१५. द्रव्यभिक्षु का स्वरूप । ३४४. रति-अरति के स्थानों को जानने का ३१५/१. असाधु कौन ? निर्देश। ३१६. भावभिक्षु का स्वरूप । द्वितीय चलिका ३१७-३१९. भिक्षु शब्द के निरुक्त । ३४५. दुसरी चुलिका के कथन की प्रतिज्ञा । ३२०-३२२. भिक्षु शब्द के एकार्थक । अवगृहीत, प्रगृहीत आदि विहारचर्या का ३२३,३२४. भिक्षु की पहचान के तत्त्व । निर्देश। ३२५. भिक्षु को स्वर्ण की उपमा । ३४७. मुनि की प्रशस्त विहारचर्या का उल्लेख । स्वर्ण के आठ गुणों का नामोल्लेख । ३४८. दशवकालिक का अध्ययन : मनक के ३२७. स्वर्ण की चार कसौटियां। समाधिमरण का कारण । ३२८,३२९. स्वर्ण की भांति गुणयुक्त व्यक्ति ही वास्तविक ३४९. दशवकालिक की रचना के प्रयोजन का साधु । निर्देश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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