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________________ दशवकालिक नियुक्ति २०३. १९१. एक शब्द के निक्षेप । पांचवां अध्ययन १९२. षट् शब्द के छह निक्षेपों का उल्लेख । __ २१७/१. पिंड और एषणा की निक्षेप-प्ररूपणा का १९३,१९४. जीव के निक्षेप, प्ररूपणा, लक्षण आदि कथन। तेरह द्वारों का निर्देश । २१८. पिंड शब्द के निक्षेप तथा द्रव्यपिंड और १९५. जीव शब्द के निक्षेप तथा भेदों का कथन।। भावपिंड का उल्लेख । ओघजीव के जीवितव्य का कथन । २१८/१. पिंड शब्द की अर्थवत्ता। १९७. भवजीव एवं तद्भवजीव के जीवितव्य का २१८/२,३. द्रव्यषणा एवं भावैषणा का कथन । कथन । २१८/४. द्रव्यषणा के अधिकार में पिंडनियुक्ति का १९८. जीव के भेदों का कथन । कथन । १९९,२००. जीव के लक्षण । २१९. सम्पूर्ण पिंडषणा का नवकोटि में अवतरण । २०१. जीव के अस्तित्व की सिद्धि । २१९/१. नवकोटि के भेद-उद्गमकोटि और २०२. जीव के अस्तित्व को नकारने में होने वाली विशोधिकोटि । बाधा । २२०. उद्गमकोटि और विशोधिकोटि के भेद । जीव और शरीर के पृथक्त्व की सिद्धि । २२०/१. अविशोधिकोटि के भेद । २०४. वायु के उदाहरण द्वारा जीव के अस्तित्व २२१. कोटियों के भेद । की सिद्धि । २२१/१. राग, द्वेष आदि की योजना से २७० २०५. आत्मा के अमूर्त्तत्व की प्ररूपणा । कोटियों का उल्लेख। २०६. कारणाभाव आदि चार अभावों के आधार छठा अध्ययन पर आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि । महाचार कथा के विषय का निर्देश । तर्क द्वारा जीव के त्रिकालावस्थान की २२२. २०७. सिद्धि । २२३. अगार और अनगार धर्म के भेदों का २०८. जीव के नित्यत्व, अमूर्त्तत्व और अन्यत्व की निर्देश। सिद्धि। २२४. गृहस्थ धर्म के बारह भेदों का संकेत । २०९. जीव का परिमाण (संख्या)। २२५. श्रमण धर्म के क्षमा आदि दस भेदों का उपमा द्वारा जीव के परिमाण का निर्देश । नामोल्लेख । २१०. काय श-द के निक्षेपों का उल्लेख । २११. २२६. अर्थ शब्द के निक्षेप तथा भेदों का कथन । अपकाय के सम्बन्ध में एक पहेली। २२७. अर्थ के धान्य, रत्न आदि छह भेदों का २११/१. निकाय काय के साथ शेष नाम आदि कायों २१२ उल्लेख। २२८. अर्थ के भेद-उपभेद की संख्या का निर्देश । का उल्लेख । द्रव्य और भावशस्त्रों का उल्लेख । २१३. २२९,२३०. चौबीस प्रकार के धान्यों का नामोल्लेख । २१४. स्वकाय, परकाय और तभयकाय शस्त्रों २३१,२३२. चौबीस प्रकार के रत्नों का नामोल्लेख। का उल्लेख । २३३. स्थावर तथा द्विपद के भेदों का संकथन । २१५. योनिभूत बीज का विमर्श । २३४. चतुष्पद के दश भेदों का निर्देश । २१६. पृथिवी आदि कायों का यथाक्रम कथन । कुप्य के अनेक भेद तथा अर्थ के ६४ भेदों २१७. का संकेत । चतुर्थ अध्ययन के एकार्थक । २३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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