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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवक्षण १२९ सोलहवीं शताब्दी की होनी चाहिए। (मु) जिनदास कृत चूर्णि में प्रकाशित नियुक्ति-गाथा के पाठान्तर। (चू.) मणिविजयजी गणिग्रंथमाला भावनगर से प्रकाशित दशाश्रुतस्कंध चूर्णि के पाठान्तर। दशवैकालिक की एक नई नियुक्ति । यह प्रति लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर के हस्तलिखित भंडार से मिली है। इसकी क्रमांक संख्या १९४१९ है। इसमें ३९ पत्र हैं। प्रारम्भ में दशवैकालिक मूल लिखा हुआ है। अंतिम पत्र में लिपिकर्ता ने दस गाथाओं वाली दशवैकालिकनियुक्ति लिखी है। इसकी प्रारम्भिक चार गाथाएं दशवैकालिकनियुक्ति की संवादी हैं। बाद की छह गाथाओं में चूलिका की रचना का संक्षिप्त इतिहास है। प्रति के अंत में “इति दशवैकालिकनियुक्ति: समाप्ता। संवत् १४४२ वर्षे कार्तिक शुक्ला ५ लिखितं ।” का उल्लेख है। यह प्रति नागेन्द्र गच्छ के आचार्य गुणमेरुविजयजी के लिए लिखी गयी थी। कृतज्ञता-ज्ञापन गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का नाम मेरे लिए मंगलमंत्र है। हर कार्य के प्रारम्भ में आदि मंगल के रूप में उनके नाम का स्मरण मेरे जीवन की दिनचर्या का स्वाभाविक क्रम बन गया है। इसलिए मेरी हर सफलता का श्रेय गुरुदेव के चरणों में निहित है। ___आचार्य श्री महाप्रज्ञ एवं युवाचार्य श्री महाश्रमण मूर्तिमान श्रुतपुरुष हैं। उनके शक्ति-संप्रेषण, मार्गदर्शन और आशीर्वाद से ही यह गुरुतर कार्य सम्पन्न हो सका है। भविष्य में भी उनकी ज्ञान रश्मियों का आलोक मुझे मिलता रहे, यह अभीप्सा है। प्रस्तुत कार्य की निर्विघ्न संपूर्ति में महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी के निश्छल वात्सल्य एवं प्रेरणा का बहुत बड़ा योग रहा है। भविष्य में भी मेरी साहित्यिक यात्रा में उनका पथदर्शन और प्रोत्साहन निरन्तर मिलता रहे, यह आकांक्षा है। आगम-कार्य मे मुनि श्री दुलहराजजी का नि:स्वार्थ मार्गदर्शन मुझे कई सालों से उपलब्ध है। पाठ-संपादन एवं कथाओं के अनुवाद में मुनिश्री की बहुश्रुतता ने मेरे कार्य को सुगम बनाया है। अनेक परिशिष्ट की अनुक्रमणिका एवं पाठान्तरों के निरीक्षण तथा प्रूफ रीडिंग में मुनि श्री हीरालालजी स्वामी का आत्मीय सहयोग भी मेरे स्मृति-पटल पर अंकित है। समणी नियोजिका मुदितप्रज्ञाजी ने व्यवस्थागत सहयोग से इस कार्य को हल्का बनाया है। ग्रंथप्रकाशन के बीच में ही जैन विश्व भारती की लेटर प्रेस बंद होने से इसके प्रकाशन में अनेक जटिलताएं सामने आईं पर जैन विश्व भारती के अधिकारियों के उदार सहयोग एवं जगदीशजी के परिश्रम से इस ग्रंथ के प्रकाशन का कार्य सम्पन्न हो सका है। नियुक्तिसाहित्य: एक पर्यवेक्षण भूमिका के कम्पोज एवं सेटिंग में कुसुम सुराणा का सहयोग भी मूल्याह रहा है। ज्ञात-अज्ञात, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जिन-जिनका सहयोग इस कार्य की संपर्ति में मिला है. उनके सहयोग की स्मृति करते हुए मुझे अत्यंत आत्मिक आह्लाद की अनुभूति हो रही है। भविष्य में भी सबका आत्मीय सहयोग मिलता रहेगा, इसी आशा और विश्वास के साथ। डॉ. समणी कुसुमप्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001929
Book TitleNiryukti Panchak Part 3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages856
LanguagePrakrit, Hind
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, G000, & G001
File Size15 MB
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