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नियुक्तिपंचक में काम करने वालों के लिए सुविधा हो सकेगी। सातवें परिशिष्ट में महत्त्वपूर्ण परिभाषाओं का सार्थ संकलन है।
प्रत्येक नियुक्ति के प्रारम्भ में गाथाओं का हिंदी में विषयानुक्रम दिया गया है। तत्पश्चात् चूर्णि, टीका एवं हमारे द्वारा संपादित गाथाओं के समीकरण का चार्ट प्रस्तुत कर दिया है, जिससे सुगमता से चूर्णि या टीका में गाथा को खोजा जा सके। नियुक्तियों का अनुवाद
एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद करना एक बहुत दुरूह और जटिल कार्य है। इसे विज्ञान की भाषा में स्रोतभाषा और लक्ष्यभाषा कहा जाता है। जिस भाषा में अनुवाद किया जाता है, वह लक्ष्य भाषा तथा जिस भाषा की सामग्री अनुदित होती है, वह स्रोतभाषा कहलाती है। अनुवादक का स्रोतभाषा और लक्ष्यभाषा—इन दोनों पर पूरा अधिकार होना आवश्यक है। आधुनिक विद्वानों ने अनुवाद के चार भेद किए हैं? १. शाब्दिक अनुवाद
३. भावानुवाद २. शब्द-प्रतिशब्द अनुवाद
४. छायानुवाद नियुक्तिपंचक में किए गए अनुवाद में शाब्दिक अनुवाद के साथ भावानुवाद और छायानुवाद भी किया गया है। दशाश्रुतस्कंध की ‘पज्जोसवणा' कप्प की नियुक्ति का शब्दानुवाद करना अत्यंत कठिन था, वहां भावानुवाद से ही गाथा का हार्द स्पष्ट हुआ है। कुछ जटिल गाथाओं को छोड़कर प्राय: गाथाओं का अनुवाद पढते समय पाठक को यही प्रतीत होगा कि मानो वे मूलरचना ही पढ़ रहे हों अत: अनुवाद को जटिल न बनाकर सहज, सरल भाषा में प्रस्तुत किया है। अनुवाद के संदर्भ मे मुनि श्री दुलहराजजी ने पंडित बेचरदासजी की इस टिप्पणी को ध्यान में रखा है"मूल का अर्थ स्पष्ट करते समय मौलिक समय के वातावरण का ख्याल न रखकर यदि परिस्थिति का ही अनुसरण किया जाए तो वह मूल की टीका या अनुवाद नहीं, किन्तु मूल का मूसल जैसा हो जाता है।
नियुक्तियों का अनुवाद अभी तक कहीं से भी प्रकाशित नहीं हुआ है अत: नियुक्तियों के प्रकाशन के समय चिंतन चला कि प्राकृत भाषा न जानने वाले अनुसंधित्सु एवं जन-सामान्य की सुविधा हेतु पाठ-संपादन के साथ अनुवाद भी दे दिया जाए। जिन गाथाओं को हमने मूल क्रमांक में नहीं जोड़ा, उन गाथाओं का भी पाठकों की सुविधा के लिए अनुवाद दे दिया है।
नियुक्तिकार तो कथा का संकेत मात्र करते हैं अत: नियुक्तिकार द्वारा निर्दिष्ट अधिकांश कथाओं का अनुवाद चूर्णि या टीका के आधार पर किया है। उत्तराध्ययन की चूर्णि संक्षिप्त है अत: उत्तराध्ययननियुक्ति की कथाओं का अनुवाद नेमिचन्द्र की टीका सुखबोधा के आधार पर किया है। चित्रसंभूत के अंतर्गत ब्रह्मदत्त की कथा में नियुक्तिगाथा तथा सुखबोधा की टीका में अंतर मिलता है। नियुक्ति-गाथा में जो नाम या घटना प्रसंग हैं, वे सुखबोधा के संवादी नहीं हैं। दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति की सभी कथाओं का विस्तार उसकी चूर्णि में नहीं मिलता अत: उसकी कुछ कथाओं का अनुवाद निशीथचूर्णि के आधार पर किया गया है।
१. अनुवाद कला पृ. २६ ।
२. जैन भारती, वर्ष १ अंक ६
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