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________________ आवश्यक नियुक्ति २२/२. सुत्तत्थो खलु पढमो, बितिओ निज्जुत्तिमीसओ भणितो। ततिओ य निरवसेसो, एस विधी होति' अणुयोगे । २३. संखातीताओ खलु, ओधीनाणस्स सव्वपगडीओ। काओ भवपच्चइया, खओवसमियाउ काओ वि॥ २४. कत्तो मे वण्णेउं, सत्ती ओधिस्स सव्वपगडीओ। चउदसविधनिक्खेवं, इड्ढीपत्ते य वोच्छामि ॥ २५. ओही खेत्तपरिमाणे, संठाणे आणुगामिए । अवट्ठिए चले तिव्व-मंद-पडिवाउप्पया इय ॥ २६. नाण-दसण विब्भंगे, देसे खेत्ते गती इय। इड्ढीपत्ताणुओगे य, एमेता पडिवत्तिओ ॥ २७. नाम ठवणा दविए, खेत्ते काले भवे य भावे य। एसो खलु 'निक्खेवो, ओधिस्सा'८ होति सत्तविहो । २८. जावइया तिसमयाहारगस्स सुहुमस्स पणगजीवस्स। ओगाहणा" जहण्णा, ओधीखेत्तं जहण्णं तु ॥ २९. सव्वबहुअगणिजीवा, निरंतरं जत्तिय'२ भरिज्जंसु२ । खेत्तं सव्वदिसागं, परमोधी खेत्तनिद्दिट्ठो ॥ ३०. अंगुलमावलियाणं, भागमसंखेज दोसु संखेजा। मावलियंतो, आवलिया अंगुलपुहत्तं५॥ १. भणिय (हा)। २. नंदी १२७/५, बृभा २०९, स्वो २३/५६३, कोष्ठकवर्ती गाथाओं (२२/१,२) का चूर्णि में कोई उल्लेख नहीं है। ये दोनों गाथाएं सभी टीकाओं में नियुक्ति गाथा के क्रम में हैं। ये गाथाएं बाद में जोडी गई प्रतीत होती हैं क्योंकि २२ वी गाथा में श्रुतज्ञान का विषय समाप्त हो जाता है तथा २३ वीं गाथा में अवधिज्ञान का प्रकरण प्रारम्भ होता है। बीच में श्रवणविधि और व्याख्यानविधि से सम्बन्धित ये दोनों गाथाएं प्रक्षिप्त सी लगती हैं। इन दोनों को निगा के क्रम में न रखने पर भी विषय की क्रमबद्धता में कोई अन्तर नहीं आता। २२/२ के निगा न होने का एक प्रमाण यह भी है कि स्वयं नियुक्तिकार अपनी व्याख्या में 'बीओ निजुत्तिमीसओ' का उल्लेख नहीं करते। संभव है ये गाथाएं विशेषावश्यकभाष्य से कालान्तर में आवश्यकनियुक्ति के साथ जुड़ गईं। इस विषय में और भी गहन चिंतन की आवश्यकता है। ३. कादी (स्वो २४/५६५)। ४. चोद्दस (म)। ५. स्वो २५/५६६। ६. स्वो २६/५७४। ७. 'वत्तीओ (अ, द), स्वो २७/५७५ । ८. ओहिस्सा निक्खेवो (अ, ब, म, स)। ९. स्वो २८/५७८ । १०. उग्गा (अ, स)। ११. नंदी १८/१, स्वो २९/५८५ । १२. जित्तियं (ब)। १३. भरिज्जासु (हा, दी)। १४. नंदी १८/२, स्वो ३०/५९५ । १५. नंदी १८/३, स्वो ३१/६०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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