SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आवश्यक नियुक्ति तिविधम्मि सरीरम्मी', जीवपदेसा हवंति जीवस्स। जेहि तु गिण्हति गहणं, तो भासति भासओ भासं ॥ ९. ओरालिय-वेउव्विय-आहारओ; गिण्हति मुयति भासं। सच्चं 'सच्चामोसं, मोसं४ च असच्चमोसं च ॥ १०. कतिहि समएहि लोगो, भासाइ निरंतरं तु होति फुडो। लोगस्स य कतिभागे, कतिभागे होति भासाए । ११. 'चतुहि समएहि लोगो, भासाइ निरंतरं तु होति फुडो। लोगस्स य चरमंते, चरमंतो० होति भासाए ॥ १२. 'ईहा अपोह' १२ वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सण्णा सती मती पण्णा, सव्वं आभिणिबोहियं३ ॥ १३. संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं१४ च खेत्तफुसणा य। 'कालो य अंतरं भाग, भाव अप्पाबडं चेव' १५ ॥ १४. गति इंदिए य काए, जोगे वेदे कसाय-लेसासु६ । सम्मत्त- नाण-दसण, संजय उवयोग आहारे । १५. भासग परित्त पन्जत्त, सुहुम सण्णी य होंति ‘भव-चरिमे। 'आभिणिबोहियनाणं, मग्गिज्जति एसु ठाणेसु'१९॥ सरीरम्मि (अ, हा, दी)। स्वो ८/३७२। आहारो (हा, दी)। मोसं सच्चामोसं (अ, हा)। स्वो ९/३७३। कइएहि (अ)। अप्रति में गाथा का उत्तरार्ध नहीं है, स्वो १०/३७६ । चउहिं समएहिं (म, दी)। चरिमंते (अ, रा, दी, म)। अ प्रति में गाथा का पूर्वार्ध नहीं है, स्वो ११/३७७ । ईहापोह (चू), ईहा अप्पोह (अ) नंदी ५४/६, स्वो १२/३९४ ।। दव्वप्प (अ)। चूर्णि में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार हैकालो अंतरभागो, भावो अप्पबहुकं ति, अनुद्वा १२१/१, स्वो १३/४०४ महेटी में इस गाथा की व्याख्या में नियुक्तिगाथाद्वयार्थः का उल्लेख है। इस उल्लेख के अनुसार प्रकाशित विभामहेटी (४०५) में निम्न गाथा को नियुक्तिगाथा के रूप में स्वीकार किया हैआएसो त्ति व सुत्तं, सुउवलद्धेसु तस्स मइनाणं। पसरइ तब्भावणया, विणा वि सुत्ताणुसारेणं ॥ लेसा य (चू)। स्वो १४/४०७। भविय चरिमे य (दी, स्वो)। पुवपडिवन्नए वा मग्गि' (दी), एतेहिं तु पदेहिं संतपदे होंति वक्खाणं (चू) पुव्वपडिवन्नए या पडिवजंते य मग्गणता (स्वो १५/४०८)। ९,१०. १. १७. १८. १९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy