________________
आवश्यक नियुक्ति
४४८.
४४९.
४५०.
४५१.
४५२-४५४.
४५५-४५७.
४५८-४६१.
४६२.
४६३.
४६४, ४६५.
४६६.
४६७.
४६८.
४६९.
४७०.
४७१.
४७२.
४७३.
४७४.
४७५.
४७६.
४७६/१.
४७६/२.
४७६/३.
४७६/४.
४७६/५.
४७६/६.
४७६/७.
४७६/८.
४७६/९.
४७७.
४७८.
Jain Education International
भावनिर्गम का प्रतिपादन ।
पुरुष शब्द के निक्षेप ।
कारण के निक्षेप ।
द्रव्यकारण के भेद, कर्त्ता के प्रकार । भावकारण के भेद |
तीर्थंकर द्वारा सामायिक की देशना क्यों ?
गौतम आदि गणधर द्वारा भगवान् की देशना का श्रवण क्यों ?
प्रत्यय के चार निक्षेप ।
भावप्रत्यय का स्वरूप ।
लक्षण के निक्षेप ।
भावलक्षण के चार प्रकार ।
नय के सात प्रकार ।
नैगम नय का निरुक्त।
संग्रह और व्यवहार नय का निर्वचन ।
ऋजुसूत्र एवं शब्द नय का स्वरूप ।
समभिरूढ तथा एवंभूत नय का स्वरूप ।
सात सौ अथवा पांच सौ नय ।
दृष्टिवाद की प्ररूपणा विभिन्न नयों से, कालिक सूत्र में श्रोताओं के आधार पर नयों की
प्ररूपणा ।
तीर्थंकर का कोई वचन नय रहित नहीं ।
नयों का समवतार कहां और कैसे ?
आर्यवज्र तक अपृथक्त्व - अनुयोग, उनके पश्चात् पृथक्त्व-अनुयोग का प्रवर्त्तन ।
स्तुति द्वारा आर्यवज्र के जीवन का कथन ।
बालक आर्यवज्र का संस्मरण ।
देवों द्वारा स्तुत तथा अक्षीणमहानसिक विद्या से पुरस्कृत आर्यवज्र ।
पदानुसारी लब्धि के धारक आर्यवज्र की स्तुति ।
आर्यवज्र को कन्या द्वारा विवाह के लिए निमंत्रण |
१५
महापरिज्ञा अध्ययन से आकाशगामिनी विद्या के उद्धारक तथा अन्तिम श्रुतधर आर्यवज्र ।
गगनगामिनी विद्या का प्रयोग कहां तक ?
गगनगामिनी विद्या को देने का निषेध ।
माहेश्वरी नगरी का उद्धार ।
अपृथक्त्व-अनुयोग में चारों अनुयोग एक साथ तथा पृथक्त्व-अनुयोग में अलग-अलग। आर्यरक्षित द्वारा पृथक्त्वानुयोग के प्रवर्त्तन का कारण ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org