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________________ ५०४ परि. ३ : कथाएं अपने साथ ले गया। वह उज्जयिनी के बाजार में एक मकान किराए पर लेकर रहने लगा। चंडप्रद्योत जब उस मार्ग से आता-जाता तब वे वेश्याएं गवाक्ष में बैठकर हाव-भाव दिखाती थीं। चंडप्रद्योत उनके प्रति अनुरक्त हो गया और अपनी दासी के साथ प्रणय-प्रस्ताव भेजा। एक दो बार अस्वीकार करके तीसरी बार गणिकाओं ने प्रद्योत को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया। वह दास प्रतिदिन बाजार में पागल का अभिनय करता कि मैं प्रद्योत हूं, मुझे जबरदस्ती पकड़कर ले जाया जा रहा है। आठ दिन तक यही क्रम चलता रहा। निर्धारित दिन प्रद्योत गणिका के यहां आया। चंडप्रद्योत एक पलंग पर लेट गया। इतने में ही अभयकमार के सैनिकों ने उसे पकडकर बांध दिया। सैनिक उसको बांधकर मुंह ढंककर बीच बाजार में से लेकर चले। प्रद्योत चिल्ला रहा था-'मैं राजा प्रद्योत हूं, मुझे जबरदस्ती पकड़कर ले जा रहे हैं अत: मुझे कोई बचाओ। लोग इस चिल्लाहट को सुनने के आदी हो गए थे अतः किसी ने ध्यान नहीं दिया।' उसे बंदी बनाकर अभयकुमार ने श्रेणिक को सौंप दिया। यह अभयकुमार की पारिणामिकी बुद्धि थी। १९५. श्रेष्ठी एक नगर में काष्ठ नामक श्रेष्ठी रहता था। उसकी भार्या का नाम वज्रा था। देवशर्मा नामक ब्राह्मण उसके घर पर प्रतिदिन काम करने आता था। एक बार श्रेष्ठी परदेश चला गया। सेठानी उस दे अनुरक्त हो गई। दोनों का संपर्क बढ़ा। सेठ के घर में तीन पक्षी थे-तोता, मैना और मुर्गा। सेठ उन तीनों को शयनकक्ष में रख कर गया था। वह ब्राह्मण रात्रि में वहां आता था। उसको सेठानी के साथ देखकर मैना ने तोते से कहा- 'पिता से कौन नहीं डरता?' तोते ने उसे टोकते हुए कहा- 'ऐसा मत कहो। जो मां का पति है, वही हमारा पिता है।' वह मैना ब्राह्मण की दुष्प्रवृत्ति को सहन नहीं कर सकी और ब्राह्मण पर आक्रुष्ट हो गई। सेठानी ने उसे मार डाला पर तोते को नहीं मारा।। एक बार दो मनि उस घर में भिक्षा के लिए आए। मुर्गे को देखकर एक साधु ने दिशा का अवलोकन किया और बोला- 'जो इस मुर्गे का सिर खाएगा, वह राजा बनेगा।' यह कथन उस ब्राह्मण ने सुन लिया। उसने सेठानी से कहा- 'इस मुर्गे को मार कर पकाओ। मैं आज इसका मांस खाऊंगा।' वह बोली- 'दूसरा मूगा ले आती हूं। पुत्र की भांति पालित-पोषित इस मुर्गे को नष्ट मत करो।' वह आग्रह करने लगा तब सेठानी ने उस मुर्गे को मार कर पकाया। वह ब्राह्मण स्नान करने गया। इतने में ही सेठानी का पुत्र पाठशाला से आ गया। मुर्गे का मांस पककर तैयार हो गया था। वह भूख से रोने लगा। वज्रा ने तब मुर्गे के सिर वाला मांस उसे परोस दिया। इतने में ही ब्राह्मण स्नान से निवृत्त होकर आ गया और भोजन करने बैठा। वज्रा ने थाली में मांस परोसा। वह मुर्गे के सिर वाला मांस मांगने लगा। वज्रा बोली- 'वह मांस तो मैंने बच्चे को दे दिया।' ब्राह्मण रुष्ट हो गया। उसने सोचा, मैंने राजा बनने के लिए मुर्गे को मरवाया था। अब यदि मैं इस बालक का सिर खा लूं तो भी राजा बन जाऊंगा। वज्रा और ब्राह्मण-दोनों ने इस मानसिक संकल्प को पूरा करने का निश्चय कर डाला। घर की दासी ने उनके चिंतन को जान लिया। वह बालक के साथ वहां से भागकर अन्यत्र चली १. आवनि. ५८८/२२, आवचू. १ पृ. ५५७, ५५८, हाटी. १ पृ. २८५, २८६, मटी. प. ५२७, ५२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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