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________________ ४८४ परि. ३: कथाएं रोहक–'सोच रहा हूं कि आपके कितने पिता हैं?' रोहक की बात सुनकर राजा विस्मित हुआ और पूछा कि तुमने क्या सोचा है ? रोहक- 'आप पांच पिता के पुत्र हैं।' राजा ने पुनः पूछा-'पांच पिता कौन-कौन से हैं ?' रोहक बोला- 'राजा, वैश्रमण, चांडाल, रजक और बिच्छू-ये पांच आपके पिता हैं।' शरीर-चिंता से निवृत्त होकर राजा अपनी मां के पास पहुंचा और आग्रहपूर्वक पूछा- 'सच बताना मेरे कितने पिता हैं ? 'मां ने कहा- 'तुम अपने पिता से उत्पन्न हुए हो।' राजा ने पुनः जोर देकर आग्रहपूर्वक पूछा तब रानी ने कहा- 'वैसे तो तुम्हारा पिता राजा ही है किन्तु जिस दिन मैं ऋतुस्नाता होकर वैश्रमण देव की पूजा करने गयी तब उसे अलंकृत और विभूषित देखकर मेरे मन में उसके प्रति अनुरक्ति पैदा हो गयी। पूजा करके घर लौटते समय रास्ते में एक चाण्डाल युवक को देखा। उसके प्रति भी अनुराग पैदा हो गया। फिर धोबी मिला उसके प्रति भी अनुराग हो गया। घर लौटकर आई तब उत्सव के अवसर पर आटे का बिच्छू बनाया हुआ था। उसे हाथ में लिया तब उस पर भी मेरा अनुराग हो गया। यदि अनुराग मात्र से पिता होते हैं तो तेरे पांच पिता हैं अन्यथा राजा ही तेरा पिता है।' माता को प्रणाम करके राजा अपने भवन में आया। रोहक को बुलाकर उसने एकान्त में पूछा'तुमने कैसे जाना कि मैं पांच पिताओं से उत्पन्न हुआ हूं?' रोहक बोला- 'आप न्यायपूर्वक प्रजा का पालन करते हैं अतः आप राजा के पुत्र हैं। आप खुले हाथों से दान देते हैं, इससे मैंने जाना कि आप वैश्रमण के पुत्र हैं। आप शत्रु के प्रति चाण्डाल की भांति क्रोध करते हैं, इससे मुझे ज्ञात हुआ कि आप चाण्डाल से उत्पन्न हैं। धोबी जैसे वस्त्रों को निचोड़ता हैं वैसे ही आप सर्वस्व हरण कर लेते हैं, इससे मैंने जाना कि आप रजकपुत्र हैं। विश्वस्त होकर सोते हुए मेरे शरीर पर आपने कम्बिका को चुभोया इससे मैंने जान लिया कि आप वृश्चिक से उत्पन्न हैं।' रोहक के उत्तर सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसे मंत्रियों में प्रधान बनाकर प्रचुर भोग सामग्री भी दी। १५५. पणित (शर्त) एक ग्रामीण ककड़ियों से भरी गाड़ी लेकर शहर गया। शहर के बाहर एक धूर्त व्यक्ति मिला। ठगने की दृष्टि से वह धूर्त बोला- 'जो व्यक्ति शकट की इन सारी ककड़ियों को खा ले तो उसको तुम क्या दोगे?' ककड़ियों का स्वामी वह ग्रामीण बोला- 'यदि तुम इन सारी ककड़ियों को खा लो तो मैं तुम्हें इतना बड़ा लड्ड दूंगा जो इस नगरद्वार से न निकल सके।' कुछ लोगों की साक्षी से शर्त निश्चित हो गयी। उस धूर्त ने शकट की सारी ककड़ियां चख-चखकर छोड़ दीं। शर्त के अनुसार वह अपना पुरस्कार मांगने लगा। ग्रामीण बोला-'तुमने सारी ककड़ियां कहां खाई हैं ?' धूर्त बोला- 'लोग ही इस विषय में प्रमाण बनेंगे।' धूर्त उस ग्रामीण को बाजार में ले गया और बोला-'अब इसे बेचो।' जो भी ग्राहक १. आवनि. ५८८/१३, आवचू. १ पृ. ५४६, हाटी. १ पृ. २७८, मटी. प. ५१८, ५१९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001927
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 01
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2001
Total Pages592
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_aavashyak
File Size11 MB
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